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________________ ( १०६ ) खास करतो जाणि, नादरच तो तसु हाणि ।। अथवा ते सुभगा नारि, रमणी सिरोमणि सार ।। १२ ।। तो सारिखा जिहारत्न, जोगीन्द्र जाणो (जोग ) तत्र । अथवा किसो जंजाल, ते नारि अबला वाल ।। १३ ।। जोरई आलिंगण देहि, मनतणी साध पूरेहि। तब कहइ रावण एम, सुण प्रिया इम हुइ केम ।। १४ ।। अनंतवीरज साध, मई धरमनो मरम लाध । ते पासि लीवर सुंस, एहवउ आणी हुंस ।। १५ ।। करिजोरि पारिकी नारि, भोगवु नहिं अवतारि। ए पणिजउ सुंसअभग्ग, पाल कदाचि सुमग्ग ।। १६ ।। मुझ पड्या दुरगति माहि, काढइ ताणी सहि साहि । व्रत भांजता बहु दोप, व्रत पालता संतोप ॥१७॥ संस लीयो मोटउ कोइ, भागो तो दुरगति होइ । लघु सुंस लीधउ तोइ, पाल्यो तो सुभगति होइ ।। १८ ॥ तिण करूं नही हुँ जोर, नवि करु पाप अघोर । वलि कहई मंदोदरि एम, तो एथि आणी केम ।। १६ ।। पाडीयउ नाह वियोग, वइठी करइ छइ सोग । रावण कहई प्रिया जाणि, आसावधइ मइ आणि ॥ २० ॥ जाण्यो हुस्यइ मुझ एह, भारिजा अति सुसनेह । मदोदरी डाहियार, चित कीयो एह विचार ॥ २१ ॥ जो पणि न कीजइ आम, तो पणि करूं ए काम । वहि गई सीता पासि, साथे सहेली जास ।। २२ ॥ २-इच्छा
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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