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________________ ( १०५ ) मणि पडी समुद्र मोहि किम लाभइ, करइ राम अति दुक्ख जी। मकरि दुक्ख कहई विद्याधर, हूं करिसु तुझ सुखुजी ।। २० ।। रे । सीतानई आणिसी उतावलि, चालो इहा थी वेगि जी। ल्यउ पातालपुरी तुम्हे नगरी, मारो मुहकुम तेग जो ॥ २१ ।। रे । वचन मानि रामरथ वइंसी, चाल्या चित्त उदास जी। लीधो साथि विरहियो खेचर, पहुता नगरी पासि जी ।। २२ ॥ २० । चन्द्रनखा सुत सुदि विढंतो, जीतो ततखिणि रामजी। सहु पैठा पातालपुरी मइ, जाणी निरभय ठाम जी ।। २३ ।। रे । मंदिर महुल लह्या अति सुंदर, सरगपुरी परतक्ष जी। __ सीता विरह करी दुख साल्या, रामचंद्र नई लक्ष जी ॥ २४ ॥ रे० । पांचमा खंडतणी ढाल पांचमी, सीताराम वियोग जी। करमथकी छूटइ नही कोई, समयसुंदर कहइ लोग जी ।। २५ ।। रे । [ सर्वगाथा १६२ ] दूहा २३ हिव सीता रोतो थकी, रावण राखइ एम । मारग मइ जोतो थको, मधुर वचन धरि प्रेम ॥ १ ॥ कामी रावण इम कहइ, सुणि सुंदरि सुजगीस। चीजा नामई एक सिर, हूं नामु दससीस ॥ २॥ मुकि सोग तु सर्वथा, आणि तु मन उल्हास । साम्हो जोइसि रागसु, हुं तुझ किंकर दास ॥३॥ कां बोलइ नहि कामिनी, घर मुझ को आदेश । सोम्हो जोइ सभागिणी, मुझ मनि अति अंदेस ॥ ४ ॥
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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