SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 260
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १०४ ) चद्रहास खडगस्यु छेद्यो, खरदूषणनो सीस जो। बेटा पासि वापनई मुक्यो, लखमण लही जगोस जी ॥ ६ । रे० वीजो कटक दिसोदिसि भागो, जीतो लखमण जोध जी। करई प्रणाम रामनइ आवी, टाली वयर विरोध जी ।। १० ।। रे०। किहां सीता दीसई नही पासई, राम कह सुणि बात जी । मो आवतां पहिली किण अपहरी, भेद न को समझात जी ॥११॥ रे० वलि कहराम कवणए खेचर, महापुरुप महाभाग जो॥ कहई लखमण सगली वातनी, युद्ध सीम सोभाग जी ।। १२॥ रे। करि सीतानी खबर विरहिया, सीता विण श्री राम जी। छोडई प्राण तिवारईहुँ पिणि, काष्ठभक्षण करु ताम जी ॥१३॥ रे० ते भणी जा तुं देस प्रदेसे, जल समुद्र मझारि जी । पइसि पातालि ढुंदि गिरि कानन, करि सीतानी सार जी ।। १४ ।। रे० तहति करि विरहियो चाल्यो, जोवई सगली ठामजी । तेहवई एक विद्याधर वरतई, रयणजटी तसु नाम जी ।।१५।। रे । तिणि रावण ले जाती दीठी, करती कोडि विलाप जो । हाक व करि तिणि हाकोटयो, रे किहा जायसि पाप जी ।। १५ ।। रे रयणजटी ते पूठवई द्रोड्यो, कहिवा लागो एम जी। रामतणी अस्त्री सीता ए, तु लेजायई केम जी ।।१।। रे० । रावण मंत्र अंजुजी तेहनी, विद्या नांखी छेदि जी। कंबुसेल परवत उपरि पड्यो, थयो मूर्छित तिणि भेदि जी । समुद्रवाय करि थयो सचेतन, ते खेचर रहइ तेथि जी ।। तिणि सीतानी खबरि कही पिणि, वीजइ न लही केथि जी ।।१९ ।। रे०
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy