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________________ ( ३७ ) घर मनुष्य भत्यउ तस्यउ रे, पणि सूनउ विण कंत। प्रीतम अटवी भली रे, नयणे प्रीयू निरखंतो रे ॥७॥रा०॥ जोबन जायइ कुल दिइरे, प्रीयुसू विभ्रम प्रेम । पंचदिहाड़ा स्वाद ना रे, ते आवइ वलि केमोरे ॥८॥ राना कंत विहुणि कामनि रे, पगि पगि पामइ दोप। साचउ पणि मानइ नहि रे, जउ बलि ते पायइ कोसोरे |रा० वर बालापणइ दीहड़ा रे, जिहा मनि रागनइ रोस । जोवन भरियां माणसारे, पगि पगि लागइ छइ दोसोरे ॥१०॥ रा० मइ प्रीतम निश्चय कियउरे, हुँ आविसि तुम साथि । नहि तरि छोडिसि प्राण हुरे, मुझ जीवित तुम हाथो रे ॥१॥ रा० पाली न रहइ पदमिनी रे, सीता लीधी साथि। सूर वीर महा साहसी रे, नीसत्या सहु तजी आथो रे ॥१२॥ रा० लछमन राम सीता त्रिण्हेरे, पहुता तातनइ पासि । पाय कमल प्रणमी करीरे, करइं त्रिह अरदासो रे ॥१३॥रा०॥ अपराध को कीधउ हुइ रे, ते खमज्यो तुम्हें तात । दसरथ गदगद स्वरइ कहइ रे, किसउं अपराध सुजातो रे ॥४॥रा०॥ जिम सुख तिम करिज्यो तुम्हे रे, हुं लेइसि व्रत भार। विषम मारग अटवी तणउ रे, तुम्हें जाज्यो हुसियारो रे ॥१शारा०॥ इम सीख माथइ चाडिनइ रे, पहुता माता पासि । मात विहुँ रोतीथकी रे, हीयडइ भीड्या उलासो रे ॥१६॥रा०|| मात कहइ मनोरथ हुंतारे, अम्हनइ अनेक प्रकार। वृद्धपणइ थास्यां सुखी रे, तुम्हें छोड्यां निरधारो रे ॥१७॥रा०॥
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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