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________________ ( २५ ) पाणी झरइं बूढापगई, प्रांखि माहि-रे वरइ धू-धलि छाय. काने सुरति नही तिसी, वोलता रे जीभ लडडि जाय॥१०॥ वी०।। हलुया पग वहइ हांलता, सूगाली रे मुहडइ पडइ लाल । दांत पडइ दाढ उखडइ, वलि माथइ रे हुयइं धउला बाल॥११॥वी०।। कडि थायइ वलि कूवडी, वलि उची रे उपडइ नहि मीटि । सगलइ डीलइ सल पडइ, नित आवइ रे वलि नाके रीटि-॥१२॥ वी० हाल हुकम हालइ नहीं, कोई मानइ रे नहि वचन-लगार। धिग बूढापन दीहडा, कोई न करइ रे मरतां नी सार ॥१३॥,वी० वृद्ध वचन इमा सांभली, राजा नउ रे आव्यउ सवेग । साच काउ इण डोकरइ, ए छोडु रे ससार उदेग ॥१४॥ वी०॥ कुटु ब सहू को कारिमउ, आऊखउ रे अति अथिर असार । हिव काइ आतम हित करू , हुं लेउं रे सयम नउ भार ॥१५॥ वीजा खड तणी भरणी, ए पहिली रे मइ ढाल रसाल । समयसुंदर कहइ ध्रम करउ, नहिं थायइ रे बूढा ततकाल ॥१६॥वी० [ सर्व गाथा २२ ] दूहा ६ इण अवसरि उद्यान मइ, चउनारणी चित ठाम । साध महांतस मोसऱ्या, सर्वभूतहित नाम ।।१।। साध तराउ आगम सुरणा, पाम्यउ परमाणंद ।' हय गय रथ सु परिवर्यउ, वांदण गयउ नरिंद ।।२।। त्रिण्ह प्रदक्षिण दे करी, वाद्यउ साध महात । 'जनम २ ना दुख गया, रिषि दरसण देखत ।।३।।
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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