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________________ [ ७८ ] नरक से निकल कर विजयनगर में नंद श्रावक के पुत्र अरहदास और श्रीदास होंगे। फिर स्वर्गवासी होकर दान के प्रभाव से वे मर कर युगलिया रूप में पैदा होंगे। वहाँ दीक्षा लेकर तप के प्रभाव से लातक देवलोक में देव होंगे। उस समय तुम अपना आयुष्य पूर्ण कर चक्रवर्ती होओगे तथा वे दोनों तुम्हारे पुत्र होंगे। फिर स्वर्ग का भव करके रावण का जोव मनुष्य भव पाकर तीर्थंकर होगा। तथा तुम चक्रवती के भव में चारित्र पालन कर वैजयंत विमान मे जाओगे और तैतिस सागरोपम का आयु पूर्ण कर रावण के जीव तीर्थकर के गणधर रूप में उत्पन्न होओगे। लक्ष्मण का जीव चक्रवत्ती पुत्र सुकुमाल भोंगरथ कितने ही भव कर पुष्करद्वीप के महाविदेहस्थ पदमपुर में चक्रवती और तीर्थकर पद पाकर मोक्षगामी होगा। सीतेन्द्र केवली भगवान की वाणी सुन कर स्वस्थान लौटे। भगवान रामचन्द्र आयुष्य पूर्ण कर निर्वाण पद पाये, सिद्ध, बुद्ध मुक्त हुए। __ सीतेन्द्र अपना वाईस सागरोपम का आयुष्य पूर्ण करते हुए कई तीर्थंकरो के कल्याणकोत्सवों में भाग लेंगे। वहीं से च्यवकर उत्तम कुल में जन्म लेकर तीथे कर वसुदत्त से दीक्षित होकर उनके गणधर होंगे और आयुष्य पूर्ण कर सिद्धि स्थान प्राप्त करेगें। अन्त में गणधर गौतम स्वामी ने महाराजा श्रेणिक से कहा कि इस सीता चरित्र का श्रवण कर शील व्रत धारण करना एवं किसीको मिथ्या कलंक न देने का गुण ग्रहण करना चाहिए।
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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