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________________ [ ७७ ] कर केवली भगवान रामचन्द्र की महिमा की। एवं सीतेन्द्र ने । वारम्वार अपने अपराधों की क्षमा याचना की। भगवान रामचन्द्र ने कमलासन पर विराजमान होकर धर्मदेशना दी, जिसे सीतेन्द्रादि सभों ने सुनी और प्रतिबोध पाकर धर्म के प्रति विशेष निष्ठावान हुये। केवली रामचन्द्र पृथ्वी में विचरण कर भव्य जीवों का उपकार करने लगे। _____एक वार सीतेन्द्र ने अवधिज्ञान का उपयोग देकर लक्ष्मण और रावण को तीसरी नरक मे असह्य वेदना सहन करते देखा। सीतेन्द्र के मन में करुणा भाव आने से उन्हें नरक से निकालने के लिए जाकर कहा कि मैं तुम्हें स्वर्ग ले जाऊँगा। उन्होने कहा-हमे अपने किए हुये कमों को भोग लेने दो। सीतेन्द्र ने कहा-मैं आपलोगों का दुःख नहीं देख सकता, और देवशक्ति से मै सब कुछ करने में समर्थ हूं। ऐसा कह कर उसने दोनों को उठाया पर उनका शरीर मक्खन की भांति गलने लगा। उन्होंने कहा-यहाँ देव दानव का कृत कर्मों के ममक्ष जोर नहीं चलता। अन्त मे सीतेन्द्र ने उन्हें वैर विरोध त्याग कर के सम्यक्त्व में दृढ रहने की प्रेरणा करके स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया। रावण और लक्ष्मण उपशम भाव से अपना नरकायु पूर्ण करने लगे। एक दिन सीतेन्द्र ने भगवान रामचन्द्र केवली को प्रदक्षिणा देकर वन्दन नमस्कार पूर्वक पूछा कि लक्ष्मण और रावण नरक से निकल कर कहां उत्पन्न होंगे, एवं मेरे से कहा कब मिलन होगा ? तथा हमलोग किस भव मे मोक्षगामी होंगे ? रामचन्द्र ने कहा- लक्ष्मण व रावण .
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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