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________________ [ २६ ] कही तो लक्ष्मण ने कहा-धोखा हुआ है, आप शीघ्र लौट कर सीता की रक्षा करें । राम ने जव लौट कर सीता को न देखा तो वह मूच्छित होकर गिर पड़े। थोडी देरी में सचेत होने पर मरणासन्न जटायुध ने उन्हें सीताहरण की बात कही। राम ने उसे करुणावश नवकार मंत्र सुनाया जिससे वह मर कर देव हो गया। राम ने सीता को दण्डकारण्य में सर्वत्र खोजा पर कोई अनुसन्धान न मिला। इसी समय चन्द्रोदय-अनुराधानन्दन बिरहिया नामक विद्याधर रणक्षेत्र में लक्ष्मण के पास आया। वह भी खरदूषण का शत्रु था, अतः लक्ष्मण का सेवक होकर युद्ध करने लगा । खरदूपण ने लक्ष्मण को फटकारा तो लक्ष्मण ने उसे युद्ध के लिए ललकारा। वह लक्ष्मण पर खड्ग प्रहार करने लगा तो लक्ष्मण ने चन्द्रहास खड्ग से उसका शिरोच्छेद कर डाला। खरदूषण के मरने से उसकी सेना तितिर बितिर हो गई। विजेता लक्ष्मण विरहिया के साथ राम के पास पहुंचा। उसने सीता को न देख कर सारा वृतान्त ज्ञात किया और सीता के अनुसन्धान निमित्त विरहिया को भेजा। विरहिया को आगे जाते एक रत्नजटी नामक विद्याधर मिला जिसने रावण को सीता को हर ले जाते देखा था। उसके घोर विरोध करने पर रावण ने उसकी विद्याएँ नष्ट कर दी थी जिससे वह मूच्छित होकर कंबुशैल पर्वत पर गिर गया। समुद्री हवा से सचेत होकर रत्नजटी ने विरहिया को सीताहरण की खबर बताई। विरहिया ने राम को पाताललंका पर अधिकार करने की राय दी, जहाँ से सीता को प्राप्त करने का उपाय सुगम हो सकता है। फिर विरहिया के साथ रथारूढ़ होकर राम पातालपुरी गए और चन्द्रनखा के पुत्र सुन्द को जीत कर पातालपुरी पर अधिकार कर लिया।
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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