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________________ [ २८ } प्रकार आपके पुण्यों से शील-रक्षा करके यहां लौटी हूँ! खरदूपण चौदह हजार सुभटों के साथ चल कर दण्डकारण्य पहुंचा, एवं रावण को भी दूत भेजकर सहायताथ आने को सूचित कर दिया। राम ने जब धनुप संभाला तो लक्ष्मण ने कहा- मेरे रहते आप मत जाइये, आप सीता की रक्षा करें। यदि आवश्यकता पड़नेपर सिंहनाद करूं तो आप सेरी सहायता करें। शूरवीर लक्ष्मण ने अकेले खरदूपण की सेना को परास्त कर दिया। चन्द्रनखा की पुकार से रावण पुष्पविमान में बैठकर आया और राम के पास सीता को देख कर उसके रूप से मुग्ध हो गया। उसने अवलोकनी विद्या के बल से लक्ष्मण का संकेत जान लिया और लक्ष्मण के स्वर में सिंहनाद किया। राम ने जटायुध से कहा-मैं लक्ष्मण की तरफ जाता हूँ, तुम सीता की रक्षा करना। राम के जाने पर रावण सीता को हरण कर तुरन्त पुष्पविमान मे बैठाकर ले उडा। जटायुध पक्षी ने इसका घोर विरोध किया और रावण को घायल कर डाला पर रावण के सामने उसकी शक्ति कितनी ? रावण ने जटायुध को धनुप से पीट कर भूमिसात् कर दिया। उसकी हड्डी पसली सब टूट गई। रावण के साथ जाते हुए सीता नाना विलाप करती हुई रो रही थी। रावण ने सोचा अभी यह दुखी है, पीछे मेरी रिद्धि देख कर स्वयं अनुकूल हो जायगी। मैंने मुनिराज के पास व्रत लिया था कि बलात्कार से किसी भी स्त्री को नहीं भोगूगा ! अतः मेरा व्रत अविचल रखूगा। सीता-शोध प्रसंग - राम जव संग्राम में लक्ष्मण के पास पहुंचे तो लक्ष्मण ने कहासीता को छोड़ कर आप यहां क्यों आये १ राम ने सिंहनाद की बात
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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