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________________ [ २ ] पृष्ठाक संख्या कृति नाम १५ रात्रि भोजन स० १६ औपदेगिक पद गाया आदि पद ६ कर जीडि कामण कहै हो ३ ज्ञान गुण चाहै तो ३ सुग्यानी संभाल तु ३ गुण ग्राहक सो अधिको ज्ञानी ३ मूढ मन करत है ममता केती ३ ३ मेरे मन मानी साहिब सेवा ३ ३ करहु वश सजन मन वच काया २३ ३ वह सजन मेरे मन वसत ८४ ३ प्रणमीजे गुरुदेव प्रभाते. • ४ सब मे अधिकीरे याकी जैतसिरी २५ ३ आतम तेरा अजब तमामा ८६ ३ कबहु मै धरम को ध्यान न कीनो ८६ ३ तुं गर्व करै सो सर्व व्यथा री ८७ ५ वारू वारू हो करणी वारू हो ८७ ३ नट वाजी री नट बाजी ८८ ३ ठग ज्यु इह घरियाल ठगे ८८ ३’ कहि मे काह को नहिं कोई ८६ ३. जीव तु करि रे कछु शुभ करणी ८९ ३ कछु कहीजान नही गति मनकी ६० ३ दुनिया मा कलियुग की गति देखो ६० ३ मन मृग तु तन वन मे माती १०
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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