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________________ (२८ ) जैन मुनि-दीक्षा __ आपनी रञ्ताओं में संवतोल्लेख वाली 'श्रेणिक चौपाई मंवत १७१६ में रचित होने से आपकी शिक्षा दीक्षा लघुवय ने ही हो चुकी थीः निश्चित होता है। खरतर गच्छ के आचार्य जिनरत्ननुरिजी के पट्टयर जिनचन्द्रसूरिजी ने जिन जिन मुनियों को दीक्षा दी थी, उस दीक्षा नंदी की नामावली के अनुसार आपकी दीक्षा संवत् १७१३ चैत्र वदी है साचोर न जिनचन्द्रसुरिजर्जा के हाथ से हुई थी। उस समय आपका नान परिवर्तन करके धर्मवर्द्धन रखा गया था और विजयर्ष जी का शिष्य बनाया गया था। गुरु-परम्परा आपने अपनी रचनाओं की प्रशस्ति में जो गुरु-परम्परा के नाम दिये हैं. उसके अनुसार आप जिनभद्रमूरि शाखा के उपाध्याय माधुकीर्ति के शिष्य साधुसुन्दर शिष्य वाचक विमलनीति के शिष्य विमलचन्द्र के शिप्य विजयहर्ष के शिष्य थे। यथागरवो श्री खरतर गच्छ गाजे, श्री जिनचन्द्रसूरि राजे जी । मात्रा जिनभद्रमूरि सहाजे, दौलति चढ़ी दिवाजे जी। पाठक प्रवर प्रगट पुन्याची, साधुकीरति सबाई जी । नाधुसुन्दर बनाय सदाइ, विद्या जस वसाई जी । वाचक विमलकीरति मतिमंता, विनलचन्द्र दुतिवंता जी।
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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