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________________ शास्त्रीय विचार स्तवन सग्रह गठसी ने एकत्त निव्वी आविल, ___ भंगे आलोयण इमै ए। एक पाच षट आठ नवकरवालीय, गुण नवकार अनुक्रमे ए ॥ १६ ॥ उपवास भंग उपवास आबिल ऊपरा, अधिको दड वखाणीयै ए । पाचमि आठमि आदि भंग किया वलि, फिर ग्रहै पातक हाणीय ए ॥ १७ ॥ ऊखल मूसल आगि चल्ही घरटीय, दीधै अट्ठिम तप करै ए । मागी सूई दीध कातरणी छुरी. ____ आबिल चढता आदरै ए ॥ १८ ॥ जीव करावै जुद्ध रात्रि भोजन, __ जल तरणे खेलण जूऔ ए । पाप तणौ उपदेस परद्रोह चीतव्या, उपवास इक इक जूजूऔ ए ।। १६ ।। पनरै करमादान नियम करी भंग, __मद्य मास माखण भख्या ए। आलोयण उपवास सकापादिक, चिहु भेदे चढता लिख्या ए ॥ २० ॥ बोल्या मिरपावाद अदत्तादान त्यु, जघन्य एकासण जाणिय ए। अति उत्कृष्टी एण जाणि आलोयणा, उपवास दस दस आणिय ए ।। २१ ।।
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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