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________________ शास्त्रीय विचार स्तवन सग्रह ढाल-६ इक दिन कोई मागध आयो पुरदर पास खीणमोह नामें गुणठाणौ बारम जाण, मोह खपाय नडो आयौ केवलनाण । प्रगटपणे जिहा चारित अमल यथा आख्यात, हिव आगै तेरम गुणथान तणी कहै वात ।२६।। घातीया चौकड़ीक्षय गई रहीय अघाती एम, प्रकृति पच्यासी जेहनी जूना कप्पड़ जेम । दरसण ज्ञान वीरिज सुख चारित पाच अनंत, केवलनाण प्रगट थयौ विचरै श्री भगवंत ३० देखें लोक अलोकनी छानी परगट बात, ___महिमावंत अढारह दूषण रहित विख्यात । आठे बरसे ऊण कही इक पूरव कोड़ि, उत्कृष्टी तेरम गुणथान तणी थिति जोड़ि ।३१। रकि शैलेसी करण निरुध्या मन वच काय, तेण अयोगीअंत समै सहु करम खपाय । पाचे लघु अक्षर ऊचरतां जेहनौ मान, ___ पंचमगति पामै सुखसु चवदम गुणथान ३२ तीजै बारमै तेरमै माहे न मरें। कोई, पहिलो वीजौ चौथी परभव साथै होइ । नारक देव नी गति में लाभ पहिला च्यार, धुरला पंच तिरिय मे मणुए सर्व विचार ।३३।। ॥ कलश ॥ इम नगर वाहड़मेर मंडण, सुमति जिन सुपसाउले । गुणठाण चवद विचार वरण्यो, भेदि आगम नै भलै ॥ संवत सतरै उगुणत्रीस, श्रावण बदि एकादशी । वाचक्क विजयहरक्ख सानिधि, कहै-इम मुनि धरमसी ॥३४॥
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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