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________________ - २८२ धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली जिहां चढता परिणाम अपूरव गुण लहै, ___ अट्ठम नाम अपूर्व करण तिण कहै । शुक्लध्यान नौ पहिलो पायो आदरै, निर्मल मन परिणाम अडिग ध्याने धरै ।२४. हिव अनिवृति करण नवमो गुण जाणिय जिहा भावथिर रूप निवृति न आणीय । क्रोध मान नै माया सजलणा हणे, उदय नहीं जिहां वेद अवेद पणो तिणे ॥२५॥ तिहा रहे सूपम लोभ काइक शिव अभिलप, . ते मूखमसपराय दशम पंडित दखै । शातमोह इण नाम इग्यारम गुण कहै, ____ मोह प्रकृति जिणठाम सहु उपशम लहै ।२६। श्रेणि चढ्यौ जौ काल करै किणही परै, तो थाये अहमिद्र अवरगति नादरै । च्यार वार समश्रेणि लहै ससार में, एक भवै दोइ वार अधिक न हुवै किमै ।२७ चढि इग्यारम सीम शमी पहिलै पड़े, मोह उदय उत्कृष्ट अर्ध पुद्गल र. । .... . खिपक श्रेणि इग्यारम गुणठाणी नहीं, दशम थकी बारम्म चढे ध्याने रही ।२८१
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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