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________________ गुरुदेव स्तवनादि - - वाणि रा किलोल लोल वखाणे इलौल ऑणि, सूत्र रा अरत्थ सो गरत्थ छ वताय ॥२॥ सूरि मंत्र साधना सवाइ पाइ अधिकाइ आसति अगम्म आइ साची हाथ सिद्धि । साचो जत्त तत्तसार औहटी विषमवार, वार तीन च्यार पाई पारिखा प्रसिद्ध ॥३॥ उजाडै पहाडे झाडे आया चोर धाडै आडै, राख्यौ साथ ओट जाणे कीध लोह कोट । जास वयण सिद्धि योग सेवका रा रोग सोग, वाय ज्युवातूल तेम जायें चढी चोट ॥४॥ साधी पंचनद जेण लाधी सिद्ध जैनचंद्र, जैनसिंघ जैनराज रतन अबीह । ओप एण पाट धम्मवाट साधा गज्ज घाट, पूज मोटे पुन्न धन धन्न धर्मसीह ॥२॥ नं०-२ जाति कडखो - पुण्य परकास परभात प्रगट्यौ प्रगट, भेटता भरम भर तिमिर भाजै । देखि खरतर सुगुरु एम दाखै दुनी, - रवि तणे तेज तुझ भाल राजै ॥१॥ अधिक ऊच्छाह सोइ दिवस उगो इला, दुरित अधार सहु दूरि डोलैं ।। ,
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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