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________________ १५८ धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली १७. श्री कु थुनाथ स्तवन राग--पंचम शुभ आतम हित साधि रे साधि, उलझयौ परसु म करि उपाधि ॥शु०॥ तु हिज राजा तुहिज रंक, सुणि दृष्टान्त ज्यु होइ निशक ॥१॥ करि नव नव भव कीडी कुथु, क्रमि सर्वारथ सुर जिन कुथु ।। छठी चक्रवर्ती साधी छः खड, पदवी दोइ पाई परचंड ॥२॥ इण हिज वलि दे उपदेश, केई तार्या टालि कलेश । आप तुअतरदृष्टिसुईख, साची धर सदा गुम धर्मशीख ॥३॥ १८ श्री अरनाथ स्तवन राग-कज्यो कद अरनाथ इम. अरति रति क्यों करी, आथि अरहट बडी एम आखी। भरिय खाली हुवे लाई खाली भरी. सूर्य शशि भमड इण बात साखी ।। १ ।। मग मन ठाम नै काम पिण वम करो, घरह मत द्रुप मत मान धागे। काल रक गव ने केद्धि फिरतो रहे. बहे मरिची नहिं कोड वारी ॥1
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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