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________________ ( २ ) शाखाओं अथवा साहित्यिक परम्पराओं की पूर्ति के लिए लिए ग्रन्थ रचना की है। जैन भंडारी मे की गई ज्ञान साधना ने विद्यारसिको के लिए प्रचूर साहित्य-सामग्री एकत्रित कर दी है। यह जैन विद्वानों की एकान्त तपस्या का ही फल है कि बहुसख्यक अनमोल ग्रन्थ नष्ट होने से बच गए हैं और वे अब भी सर्वसाधारण के लिए सुलभ है। राजस्थान के लब्धप्रतिष्ट जैन विद्वानो एव कवियों की संख्या भी काफी बड़ी है। इन विद्वानों ने अनेक भाषाओं में ग्रन्थ-रचना की है। जहा इन्होंने संस्कृत मे ग्रन्थ लिखे है, वहा प्राकृत एवं अपभ्रंश को भी अपनी प्रतिभा की भेंट दी है। लोकभापा की ओर तो जेन विद्वानो का ध्यान सदा से ही रहा है। यही कारण है कि राजस्थानी जैन साहित्य की विशालता आश्चर्यजनक है। प्राचीन राजस्थानी साहित्य को तो जैन विद्वानों की विशेष देन है। राजस्थान के जन साहित्य-तपस्वियो मे उपाध्याय धर्नवर्द्धन का विशिष्ट स्थान है। ये एक साथ ही सद्धर्मप्रचारक, समर्थ विद्वान पब सरस कवि के रूप में प्रतिष्ठित है। इनकी अपनी रचनाएँ काफी अधिक है और वे संस्कृत, पिंगल एवं डिंगल आदि अनेक भाषाओ मे है। इतना ही नहीं, इन्होंने अपनी रचनाओं मे अनेक परम्पराओ का सुन्दर निर्वाह कर के अपने साहित्य को समष्टि रूप से एक विशिष्ट वस्तु बना दिया है, जिसके विषय मे आगे जरा विस्तार से चर्चा की जाएगी।
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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