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________________ * चौवीस तीर्थकर पुराण* सजाई गई थी उसके ऊपर कई रंगोंकी पताकाएं लगी हुई थीं और चारों ओर बंधी हुई मणियोंकी छोटी छोटी घंटियां रुण झुण शब्द करती थीं। सबसे पहले बड़े बड़े भूमि गोचरी राजा पालकीको अपने कंधोंपर रखकर जमीनमें सात कदम चले फिर विद्याधर राजा कन्धोंपर रखकर सात कदम आकाशमें चले इसके अनन्तर प्रेमसे भरे हुए सुर असुर उस पालकीको अपने कन्धों पर रखकर आकाश मार्ग से चले । उस समय देव देवेन्द्र जय जय शब्द बोलते और कल्प वृक्षके मुगन्धित फूलोंकी वर्षा करते जाते थे। असंख्य देव देवियां और नर नारी समूह भगवानके पीछे जा रहा था । शोक से विह्वल माता मरुदेवी, महादेवी, यशस्वती और सुनन्दा आदि अंतःपुर की नारियां तथा महाराज नाभिराज, भरतेश्वर, बाहुबली कच्छ महाकच्छ आदि प्रधान प्रधान राजा अत्यन्त उत्कण्ठित भावसे भगवान्के तपः कल्याणक की महिमा देख रहे थे। देव लोग भगवानकी पालकी अयोध्यापुरीके समीपवर्ती सिद्धार्थ नामक बनमें ले गये । वह वन चारों ओरसे सुगन्धित फूलोंकी सुवास से सुगन्धित हो रहा था। वहां चतुर देवांगनाओं ने कई तरह चौक पर रक्खे थे। देवों ने एक सन्दर पट मण्डप बनाया था जिसमें देवांगनाओं का मनोहर अभिनय नृत्य हो रहा था। वह बन गन्धर्व और किन्नरों के मुरीले संगीत से गूज रहा था। वनके मध्य भाग में एक चन्द्रकान्त मणिको शिला पड़ी थी। पालकीसे उतर कर भगवान उसी शिला पर बैठ गये। वहां उन्होंने क्षण भर ठहर कर सबकी ओर मधर दृष्टिसे देखा और फिर देव, देवेन्द्र तथा कुटम्बी जनोंसे पूछ कर समस्त वस्त्राभूषण उतार कर फेंक दिये । पंच मुष्टियोंसे केश उखाड़ डाले तथा पूर्व दिशाकी ओर मुंहकर खड़े हो सिद्ध परमेष्ठी को नमस्कार करते हुए इन्द्र, सिद्ध, और आत्मा की साक्षी पूर्वक समस्त परिग्रहों का त्याग कर दिया था इस तरह भगवान् आदिनाथने चैत्र वदी नवमी के दिन सायंकालके समय उत्तराषाढ़ नक्षत्रमें जिन दीक्षा ग्रहण की थी। इन्हें दीक्षा लेते समयही मनापर्यय ज्ञान और अनेक ऋद्धियां प्राप्त हो गई थीं। इनके साथमें कच्छ महाकच्छ आदि चार हजार राजाओंने भी जिनदीक्षा ग्रहण की थी। चार हजार मुनियोंसे घिरे हुए आदीश्वर महाराज, तारा परिवृत चन्द्रमा की तरह शोभायमान होते थे। appmeanmassamme H 3 - -
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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