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________________ २५८ * चौवीस तीर्थकर पुराण * |नामके श्मशानमें पहुंचे और रातमें प्रतिमा योग धारण कर वहीं पर विराजमान होगये । उन्हें देखकर महादेव रुद्रने अपनी दुष्टतासे उनके धैर्यकी परीक्षा करनी चाही । उसने बैताल विद्याके प्रभाव से रात्रिके सघन अधिकार को और भी सघन बना दिया। अनेक भयानक रूप बनाकर नाचने लगा। कठोर शब्द, अट्ठहास और विकराल दृष्टिसे डराने लगा। तदनन्तर सर्प, सिंह, हाथी, अग्नि और वायु आदिके साथ भीलोंकी सेना पनाकर आया । इस तरह उसने अपनी विद्याके प्रभाव से खूध उपसर्ग किया । पर भगवान महावीरका चित्त आत्म ध्यानसे थोड़ाभी विचलित नहीं हुआ। अनेक अनुपम धैर्यको देकर महादेवने असली रूपमें प्रकट होकर उनकी खूध प्रशंसा की-स्तुतीकी और क्षमा याचना कर अपने स्थानपर चला गया ।। वैशालीके राजा चेटककी छोटी पुत्री चन्दना बनमें खेल रही थी। उसे देख कर कोई विद्याधर कामवाणसे पीड़ित हो गया। इसलिये वह उसे उठाकर आहाशमें लेकर उड़ गया पर ज्योंही उस विद्याधरकी दृष्टि अपनी निजकी स्त्रीपर पड़ी त्योंही वह उससे डरकर चन्दनाको एक महाटवीमें छोड़ आया। वहांपर किमी भीलने देखकर उसे धनपानेकी इच्छासे कौशाम्बी नगरीके वृष मदत्त सेठके पास भेज दिया । सेठकी स्त्रीका नाम समुद्रा था। वह बड़ी दुष्टा थी, उसने सोचा --कि कभी सेठजी इस चन्दनाकी रूप राशिपर न्यौछावर होकर मुझे अपमानित न करने लगें। ऐसा सोचकर वह चन्दनाको खूब कष्ट देने लगी। सेठानीके घरपर प्रतिदिन चन्दनाको मिट्टीके बर्तनमें कांजीसे मिरा हुआ पुराने कोदोका भात ही खानेको मिलता था। इतने परभी हमेशा सांकल में बंधी रहती थी। इन सब बातोंसे उसका सौन्दर्य प्रायः नष्ट सा हो गया था। एक दिन विहार करते हुए भगवान महावीर आहार लेने के लिये कौशाम्बी नगरीमें पहुंचे । उनका आगमन सुनकर चन्दनाकी इच्छा हुई कि मैं भगवान् महावीरके लिये आहार दूं पर उसके पास रक्खा ही क्या था। उसे जो भी मिलता था वह दूसरेकी कृपासे और सड़ा हुआ। तिसपर वह सांकलमे बंधी हुई थी। चन्दनाको अपनी परतन्त्रताका विचारकर बहुत ही दुःख हुआ। पर भव भक्ति भी कोई चीज है। ज्योंही भगवान महावीर उसके द्वारपरसे निकले
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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