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________________ * चोयीस तीर्थकर पुराण * ३७ - - नाभिराजकी राजधानी अयोध्यापुरी थी। राजदम्पति अनेक तरहके सुख भोगते हुए बड़े आनन्दसे वहां रहते थे और नये नये उपायों से प्रजाका पालन करते थे। अब यहां पर यह प्रकट कर देना अनुचित न होगा कि वन नाभि चक्रवर्ती जो कि सर्वार्थ सिद्धिमें अहमिन्द्र हुए थे कुछ समय बाद वहांसे चयकर इन्हीं राजदम्पतिके पुत्र होंगे और वृषभनाथ नामसे प्रसिद्ध होंगे। ये वृषभनाथ ही इस युगके प्रथम तीर्थङ्कर कहलावेंगे। सर्वार्थ सिद्धिमें ज्योज्यों वज्रनाभि अहमिन्द्रकी आयु कम होती जाती थी त्यों त्यों तीनों लोकों में आनन्द बढ़ता जाता था। यहां तक कि, वहां उनकी आयु सिर्फ छः माहकी बाकी रह गई तव इन्द्रकी आज्ञासे धनपति कुवेरने राजधानी अयोध्याके समीप ही एक दूसरी अयोध्या नगरीवनाई । वह नगरी बारह योजन लम्बी और नौ योजन चौड़ी थी। नगरीके बाहर चारों ओर अगाध जलसे भरी हुई सुन्दर परिखा थी जिसमें कई रंगोंके कमल फूले हुए थे और उन कमलोंकी परागसे उस परिखाका पानी पिघले हुए सुवर्णकी नाईजान पड़ता था। उसके बाद सुवर्ण मय कोट बना हुआ था। उस कोटकी शिखरे बहुत ऊंची थीं। कोटके चारों ओर चार गोपुर बने हुए थे। जिनकी गगनचुम्बी शिखरों पर मणिमय कलशों ऐसे मालूम होते थे मानो उदयाचलकी शिखरों पर सूर्यके विम्ब ही विराजमान हों। उस नगरीमें जगह जगह विशाल जिन मन्दिर बने हुए थे जिनमें जिनेन्द्र देवकी रत्नमयी प्रतिमाएं पधराई गई थीं। कहीं स्वच्छ जलसे भरे हुए तालाव दिखाई देते थे। उन तालाबोंमें कमल फूल रहे थे और उन पर मधुके पीनेसे मत्त हुए भौंरें मनोहर शब्द करते थे। कहीं अगाध जलसे भरी हुई वापिकाएं नजर आती थीं जिनके रत्न खचित किनारों पर हंस, सारस आदि पक्षी क्रीड़ा किया करते थे। कहीं आम, नींबू, अमरूद, अनार जम्बीर आदिके पेड़ोंसे विशोभित बड़े बड़े बगीचे बनाये गये थे जिनमें तरह तरहके फूलोंकी सुगन्धि फैल रही थी। कहीं अच्छे अच्छे बाजार बने हुए थे जिनमें हीरा मोती पन्ना आदि मणियों के ढेर लगाये जाते थे। कहीं सेठ साहूकारोंके बड़े बड़े महल बने हुए थे। जिनकी शिखरों पर कई तरहके रत्न जड़े हुए थे। किसी सुन्दर जगहमें राज
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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