SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 327
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * चौबीस तीयङ्कर पुराण * १५७ (२) वर्तमान परिचय इसी जम्बू द्वीपके भरत क्षेत्रमें एक चम्पा नगर है उसमें इक्ष्वाकुवंशीय राजा वासुपूज्य राज्य करते थे उनकी महारानीका नाम जयावती था। जब ऊपर कहे हुए इन्द्रकी वहांकी आयु सिर्फ छह माहकी बाकी रह गई थी तभी से कुबेरने महाराज वसुपूज्यके घरपर रत्नोंकी वर्षा करनी शुरू कर दी और श्री, हो आदि देवियां महारानीकी सेवा के लिये आ गई। एक दिन महारानी जयावतीने रात्रिके पिछले भागमें ऐरावत आदि सोलह स्वप्न देखे । सवेरे उठकर जव उसके प्राणनाथसे उनका फल पूछा तब उन्होंने कहा--."आज आषाढ़ कृष्ण पष्टीके दिन शतभिषा नक्षत्रमें तुम्हारे गर्भमें किसी तीर्थङ्कर बालकने प्रवेश किया है। ये स्वप्न उसीकी विभूतिके परिचायक हैं । याद रखिये उसी दिन उसी इन्द्रने वसुन्धरा छोड़कर रानी जयावती के गर्भ में प्रवेश किया था। चतुर्णिकायके देवोंने आकर गर्भ कल्याणका उत्सव मनाया और उत्तम उत्तम आभूषणोंसे राजा रानीका सत्कार किया। ____ अनुक्रमसे गर्भके दिन पूर्ण होनेपर रानीने फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशीके दिन पुत्र रत्नका प्रसव किया। उसी समय हर्षसे नाचते गाते हुए समस्त देव और इन्द्र चम्पा नगर आये और वहांसे बाल तीर्थंकरको ऐरावत हाथीपर बैठाकर मेरु पर्वतपर ले गये । वहां सौधर्म और ऐशान इन्द्रने उनका क्षीर सागरके जलसे अभिषेक किया। अभिषेकके बादमें इन्द्राणीने सुकोमल वस्त्रोंसे उनका शरीर पोंछकर उसमें उत्तम उत्तम आभूषण पहिनाये और इन्द्रने मनोहर शब्दोंमें स्तुति की। यह सब कर चुकने के बाद देव लोग बाल तीर्थकरको चम्पा नगरमें वापिस ले आये । बालकका अनुल्य ऐश्वर्य देखकर माता जयाबनीका हृदय मारे आनन्दसे फूला न समाता था । इन्द्रने अनेक उत्सव किये बन्धु-बान्धवोंको सलाहसे उनका वासुपूज्य नाम रखा और उनके विनोदके लिये अनेक देवकुमारोंको छोड़कर सबके साथ स्वर्गको ओर प्रस्थान किया। ___ यहां राज्य परिवारमें बड़े प्रमसे भगवान वासुपूज्यका लालन पालन होने लगा। भगवान श्रेयान्सनाथके मोक्ष चले जानेके बाद चौअन सागर व्यतीत होनेपर वासुपूज्य स्वामी हुए थे। इनकी आयु भी इसी प्रमाणमें शामिल है
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy