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________________ * चौबीस तीर्थक्कर पुराण * - - - % 3D भगवान वासुपूज्य शिवासु पूज्योऽभ्युदय कृयासु त्वं वासुपूज्य स्त्रिदशेन्द्र पूज्यः मयापि पूज्योऽल्पधिया मुनीन्द्रः दीपार्चिषा किं तपनो न पूज्यः --समन्तभद्र 'हे मुनिराज ! आप वासुपूज्य, मङ्गलामयी अभ्युदय क्रियाओंमें देवराजके द्वारा पूजनीय हैं-पूजा करनेके योग्य हैं । इसलिये मुझ अल्पबुद्धिके द्वारा भी पूजनीय हैं । क्या दीपककी ज्योतिसे सूर्य पूजनीय नहीं होता। पूर्व भव वर्णन . पुष्कराध द्वीपके पूर्व मेरुकी ओर सीता नदीने पूर्वीय तटपर एक बत्सकावती देश है। उसके रत्नपुर नामके नगरमें पद्मोत्तर नामका राजा राज्य करता था। वह धर्म अर्थ कामका पालन करते समय धर्मको कभी नहीं भूलता था। ऊषाकी लालीकी तरह उसका दिव्य प्रताप समस्त दिशाओंमें फैल रहा था। उसका यश क्षीरसागरकी तरङ्गोंके समान शुक्ल था पर उनकी तरह चञ्चल नहीं था। उसके एक धनमित्र नामका पुत्र था जिसे राज्य-भार सौंपकर वह सुखसे समय बिताता था। किसी एक दिन मनोहर नामके पर्वतपर युगन्धर महाराजका शुभागमन हुआ। जब बनमालीने राजाके लिये उनके आगमनकी खबर दी तब वह हर्षसे पुलकित बदन हुआ परिवार सहित उनकी बन्दनाके लिये गया और भक्ति पूर्वक नमस्कार कर उचित स्थान पर बैठ गया। उस समय युगन्धर महाराज अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आस्रव, संवर निर्जरा, वोधि दुर्लभ और धर्म इन बारह भावनाओं का वर्णन कर रहे थे । ज्यों ही पदमोत्तर राजाने अनित्य आदि भावनावोंका स्वरूप सुना त्योंही उसके हृदय में वैराग्य रूपी सागर हिलोरे लेने लगा। उसे संसार और शरीरके प्रति - -
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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