SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 324
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५४ * चौपीस तोवर पुराण के घरपर देवोंने पञ्चाश्चर्य प्रकट किये । भगवान आहार लेकर वनमें वापिस चले गये । इस तरह उन्हों ने छदमस्थ अवस्थामें मौन पूर्वक दो वर्ष व्यतीत किये। इसके बाद दो दिनके उपवासकी प्रतिज्ञा लेकर उसी मनोहर घनमें तुम्वुर वृक्षके नीचे ध्यान लगाकर विराजमान हुये। और वहीं उन्हें माघ कृष्ण अमावास्याके दिन श्रवण नक्षत्रमें सायंकालके समय लोकालोकका प्रकाश करनेवाला पूर्णज्ञान प्राप्त हो गया। उसी समय देवोंने आकर उनका कैवल्य महोत्सव मनाया । कुवेरने समवसरणकी रचना को उसके मध्यमें सिंहासनपर अन्तरीक्ष विराजमान होकर उन्होंने अपना मौन भंग किया अर्थात् दिव्य ध्वनिके द्वारा सप्त तत्व नव पदार्थीका वर्णन किया। जिससे प्रभावित होकर अनेक नर नारियोंने देश व्रत और महाव्रत ग्रहण किये । प्रथम उपदेश समाप्त होनेपर इन्द्रने मनोहर शब्दों में उनकी स्तुति की और फिर विहार करनेके लिये प्रार्थना की। आवश्यकता देखते हुए उन्होंने आर्य क्षेत्रोंमें सर्वत्र विहार कर जैन धर्मका प्रचार किया और शीतलनाथके अन्तिम तीर्थमें जो आधे पत्यतक धर्मका विच्छेद हो गया था उसे दूर किया। ____ आचार्य गुणभद्रने लिखा है कि उनके सतहत्तर गणधर थे, तेरहसौ ग्यारह श्रुतकेवली थे, अड़तालीस हजार दो सौ शिक्षक थे, छह हजार अवधिज्ञानी थे, छह हजार पांच सौ केवल ज्ञानी थे, ग्यारह हजार विक्रिया ऋद्धिके धारक थे, छह हजार मनः पर्यय ज्ञानी थे, और पाच हजार वादी थे। वे आयुके अन्तमें सम्मेद शिखरपर पहुंचे और वहां एक महीने तक योग निरोध कर हजार राजाओंके साथ प्रतिमा योगसे विराजमान हो गये । वहींपर उन्होंने शुक्लध्यानके द्वारा अघातिया कर्माकी पचासी प्रकृतियोंका क्षय कर श्रावण शुक्ला पूर्णमासीके दिन धनिष्ठा नक्षत्रमें शाम के समय मुक्तिमन्दिरमोक्षमहल में प्रवेश किया। देवोंने आकर उनके निर्वाण क्षेत्रकी पूजा की। - -- - -
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy