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________________ * चोवीस तीर्थकर पुराण २३ EILy मानी था, वह अपने सामने किसीको कुछ भी नहीं समझता था। यहांतक कि पिता वगैरह गुरुजनोंकी भी आज्ञा नहीं मानता था। एक दिन इसके पितान इसे कुछ आज्ञा दी जिसे न मानकर इसने पत्थरके खम्भेसे अपना सिर फोड़ लिया और उसकी व्यथासे मरकर यह सुअर हुआ है। ____ यह वन्दर अपने पहले भवमें धान्य नगरके सुदत्ता और कुवेर नामक वैश्य दम्पतिका नागदत्त नामसे प्रसिद्ध पुत्र था। यह बड़ा मायावी था, इस. का चित्त हमेशा छल कपट करनेमें लगा रहता था। किसी समय इसकी माने अपनी छोटी लड़कीकी शादीके लिये दूकानमेंसे कुछ धन ले लिया जिसे यह देना नहीं चाहता था। इसने मांसे धन लेनेके लिये अनेक उपाय किये पर वे सब निष्फल हुए। अन्तमें इसी दुश्वसे मरकर यह बन्दर हुआ है। और "यह नेवला भी पहले भवमें सुप्रतिष्ठित नगरमें कादम्बिक नामका पुरुष या । कादम्बिक बहुत लोभो भा, किसी समय वहांके राजाने जिन मन्दिर बनवानेके कामपर इसे नियुक्त किया। सो यह ईट लानेवाले पुरुषोंको कुछ धन देकर बहुत कुछ ईटें अपने घर डलवाता जाता था। भाग्य 'वश किसी दिन कुछ ई टोंमें इसे सोनेकी शलाकाएँ मिल गयीं जिससे इसका लोभ और भी अधिक बढ़ गया। कादम्बिकको एक दिन अपनी लड़कीकी ससुराल जाना पहा सो वह बदले में मन्दिरके कामपर अपने पुत्रको नियुक्त कर गया था और उससे कह भी गया था कि मौका पाकर कुछ ईटे अपने घरपर भिजवाते जाना । परन्तु पुत्रने यह पापका काम नहीं किया। जब कादम्बिक लौटकर वापिस आया और मालूम हुआ कि लड़केने हमारे कहे अनुसार घरपर ईटे नहीं डलवाई है तब उसने उसे खूब पीटा और साथमें 'यदि ये पांव न होने तो मैं लड़को की ससुराल भी न जाता' ऐसा सोचकर अपने संव भी काट लिये जब राजाको इस बातका पता मिला तब उसने इसे खूब पिटवाया जिससे मर कर वह नेवला हुआ है। __ आज आपने जो मुझे आहार दिया है उसका वैभव देखनेसे इन सबको अपने पूर्व भवोंका स्मरण हो गया है जिससे ये सब अपने कुकर्मोपर पश्चाताप कर रहे हैं । इन सबने आज पात्र दानकी अनुमोदनासे विशष पुण्यका
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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