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________________ * चवीस तीथकर पुराण * Mam manuraaaarmi %3 की जिसके प्रभावसे वे तीनों मरकर कुरुक्षेत्र उत्तम भोग भूमिमें आर्य हुए। और वहांकी आयु पूर्णकर ऐशान स्वर्गके प्रभा, कांचन और रूषित नामके विमानों में क्रमसे प्रभाकर, कनकाम और प्रभञ्जन नामके देव हुए। जब आप ऐशान स्वर्गमें ललितांग देव थे तब ये सब तुम्हारे परिवारके देव थे। वहांसे चय कर वह शार्दूलका जीच दिवाकर देव श्रीमती और सागरका लड़का होकर मतिवर नामका आपका मन्त्री हुआ है। कनकप्रभका जीव अनन्तमति और श्रुतकीर्तिका सुपुत्र होकर आपका आनन्द नामधारी पुरोहित हुआ है। प्रभाकरका जीव, आजीव और अपराजित सेनानीका पुत्र होकर अकंपन नामसे प्रसिद्ध आपका सेनापति हुआ है और प्रभचनका जीव धनदत्ता एवं धनदत्तका पुत्र होकर धनमित्र नामसे प्रसिद्ध आपका सेठ हुआ है । यस, इस पूर्व भवके बन्धनसे ही आपका इनमें और इनका आपमें अधिक स्नेह है । इस तरह मुनिराजके मुखसे मतिवर आदिका परिचय पाकर श्रीमती और वनजंघ बहुत ही प्रसन्न हुए। उस निर्जन वनमें राजा और मुनिराजके वीच जब यह सम्बाद- चल रहा था तव वहां नेवला, शार्दूल, चन्दर और सुअर ये चार जीव मुनिराजके चरणोंमें अनिमेष दृष्टि लगाये हुए बैठे थे । बज्रजंघने कौतुक वश मुनिराजसे पूछा-हे तपोनिधे! ये नकुल आदि चार जीव आपकी ओर टकटकी लगाये हुए क्यों बैठे हैं ? तब उन्होंने कहा-सुनिये, “यह व्याघ्र पहले इसी देशमें शोभायमान हस्तिनापुरमें धनवती और सागरदत्त नामक वैश्य दम्पतिके उग्रसेन नामका पुत्र था। यह क्रोधी बहुत था इसलिये इसने अपने जीवनमें तिर्यश्च आयुका वध कर लिया था । उग्रसेन वहांके राजभण्डारका प्रधान कार्यकर्त्ता था इसलिये वह दूसरे छोटे नौकरोंको दबाकर भण्डारसे घी चावल आदि वस्तुएं वेश्याओंके लिये दिया करता था। जब राजाको इस-घातका पता चला तब उसने उसे पकड़वाकर खूब-मार लगवाई जिससे वह मर कर यह व्याघ हुआ है।" यह सुअर पूर्वभवमें विजय नगरके बसन्त सेना और महानन्द नामका राज दम्पतीका हरिवाहन-नामसे प्रसिद्ध पुत्र था। हरिवाहन अधिक अभि -
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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