SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 258
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५४ * चौवीस तीर्थकर पुराण * - - - - - दानव, मृग और मानव सभीको हर्ष हुआ था। चारो निकायके देवोंने आकर जन्मोत्सव मनाया था। उस समय कुण्डनपुर अपनी सजावटसे स्वर्गको भी पराजित कर रहा था। देवराजने इनका वर्द्धमान नाम रक्खा था। जन्मोत्सवकी विधि समाप्तकर देव लोग अपने-अपने स्थानोंपर चले गये। राजपरिवारमें चालक बर्द्धमानका बहुत प्यारसे लालन पालन होने लगा। वे द्वितीयाके इन्द्रकी तरह दिन प्रति दिन बढ़कर कुमार अवस्थामें प्रविष्ट हुए। कुमार वईमानको जो भी देखता था उसीकी आंखें हर्जके आंसुओंसे तर हो जाती थीं. मन अमन्द आनन्दसे गदगद हो उठता था और शरीर रोमाञ्चित हो जाता था। इन्हें अल्पकालमें ही समस्त विद्याएं प्राप्त हो गई थीं। बालक वर्द्धमानके अगाध पाण्डित्यको देखकर अच्छे-अच्छे विद्वानोंको दांतों तले अंगुलियां दवानी पड़ती थीं। विद्वान होनेके साथ साथ वे शूर वीरता और साहस आदि गुणोंके अनन्य आश्रय थे। किसी एक दिन सौधर्म इन्द्रकी सभामें चर्चा चल रही थी कि 'इस समय भारतवर्ष में वर्द्धमान कुमार ही सबसे बलवान-शूर वीर और साहसी हैं।......"इस चर्चाको सुनकर एक संगम नामका कौतुकी देव कुण्डनपुर आया। उस समय वर्द्धमान कुमार इष्ट मित्रोंके साथ एक वृक्षपर चढ़ने उतरनेका खेल खेल रहे थे। मौका देखकर संगम देवने एक भयंकर सर्पका रूप धारण किया और फुकार करता हुआ वृक्षकी जड़से लेकर स्कन्धतक लिपट गया। नागराजकी भयावनी सूरत देखकर वर्द्धमान कुमारके सव साथी वृक्ष से कूँद-फूंदकर घर भाग गये पर उन्होंने अपना धैर्य नहीं छोड़ा वे उसके विशाल फणपर पांव देकर खड़े हो गये और आनन्दसे उछलने लगे। उनके साहससे प्रसन्न होकर देव, सर्पका रूप छोड़कर अपने असली रूपमें प्रकट हुआ। उसने उनकी खूब स्तुति की और महावीर नाम रक्खा । भगवान् महावीर जन्मसे ही परोपकारमें लगे रहते थे। जब वे दीनदुःखी जीवोंको देखते थे तब उनका हृदय रो पड़ता था। इतना ही नहीं, जबतक उनके दुःख दूर करनेका शक्तिभर प्रयत्न न कर लेते तबतक चैन नहीं
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy