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________________ * चौबीस तीर्थङ्कर पुराण * - - nambandon पूर्वभवमें मुनि अवस्थामें जो जो कार्य करनेका विचार किया था। अभी तक उन कार्योका सूत्रपात भी नहीं किया। मैंने अपनी विशाल आयु सामान्य मनुष्योंकी तरह भोग-विलासों में फंसकर व्यर्थ ही बिता दी। समस्त विषय सामग्री क्षण भंगुर है-देखते देखते नष्ट हो जाती है इसलिये इससे मोह छोड़ कर आत्म कल्याण करना चाहिये.... इस तरह विचारकर भगवान् शांतिनाथ अलङ्कार घरसे बाहर निकलें उसी समय लौकान्तिक देवोंने आकर उनके विचारोंका समर्थन किया जिससे उनका वैराग्य सागर और भी अधिक लहराने लगा उसमें तरल तरंगें उठने लगीं। लौकान्तिकदेव अपना कार्य ममाप्त कर ब्रह्मलोकको वापिस चले गये और वहांसे इन्द्र आदि समस्त देव संसारकी असारताका दृश्य दिखलाते हुये हस्तिनापुर आये। भगवान् शांतिनाथ नारायण नामक पुत्रको राज्य देकर सर्वार्थसिद्धि पालकी पर सवार होगये देव लोग पालकीको कन्धोंसे उठाकर सहस्रान बनमें ले गये। वहां उन्होंने पालकीसे उतरकर ज्येष्ठ कृष्णा चतुर्थीके दिन शामके समय भरणी नक्षत्रमें 'ओम् नमः सिद्धेभ्यः' कहते हुए जिन दीक्षा ले ली। सामायिक चरित्रकी विशुद्धतासे उन्हें उसी समय मनः पर्यय ज्ञान प्राप्त हो गया। उनके साथमें चक्रायुध आदि एक हजार राजाओंने भी दिगम्बर दीक्षा धारण की थी। देव लोग दीक्षा कल्याणकका उत्सव समाप्त कर अपने अपने घर चले गये। तीन दिन बाद मुनिराज शांतिनाथने आहारके लिये मन्दरपुरमें प्रवेश किया। वहां उन्हें सुमित्र राजाने भक्ति पूर्वक आहार दिया। पात्र दानसे प्रभावित होकर देवोंने सुमित्र महाराजके घर पर रत्नोंकी वर्षा की। आहार लेकर भगवान् शांतिनाथ पुनः बनमें लौट आये और आत्म ध्यानमें लीन हो गये । इस तरह उन्होंने छद्मस्थ अवस्थामें सोलह वर्ष बिताये । इन सोलह वर्षों में भी आपने अनेक जगह विहार किया और अपनी सौम्य मूर्तिसे सब जगह शांतिके झरने बहाये । इसके.अनन्तर आप घूमते हुये उसी सहसाम्र बनमें आये और वहां किसी नन्द्यावर्त नामके पेड़के नीचे तीन दिन उपवासकी प्रतिज्ञा लेकर विराजमान हो गये। उस समय भी उनके साथ चक्रायुध आदि हजार मुनिराज विराजमान-थे। उसी समय उन्होंने क्षपक श्रेणी चढ़कर शुक्ल -
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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