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________________ • चौधोम तोर्यकर पुराण * mumtamne an - दृढ़रथ जो कि राजा मेघरथका छोटा भाई था और उसीके साथ तपस्या कर सर्वार्थसिद्धि में अहमिद्र हुआ था वह राजा विश्वसेनकी द्वितीय पत्नी यशस्वतीके गर्भसे चक्रायुध नामका पुत्र हुआ। उसकी उत्पत्तिके समयमें भी अनेक उत्सव मनाये गये थे। महाराज विश्वसेनने योग्य अवस्था देखकर अपने दोनों पुत्रोंका कुल, वय, रूप, शील आदिसे शोभायमान अनेक कन्यायोंके साथ विवाह करवाया था। जिनके साथ वे तरह तरहके कौतुक करते हुए सुखसे समय विताते थे। इस तरह देव दुर्लभ सुख भोगते हुये जब भगवान शान्तिनाथके कुमार कालके पच्चीस हजार वर्ष बीत गये तव महाराज विश्वसेनने राज्याभिषेक पूर्वक उन्हें अपना राज्य दे दिया और स्वयं घनमें जाकर दीक्षा ले ली। इधर भगवान् शांतिनाथ छोटे भाई चक्रायुधके साथ प्रजाका पालन करने लगे। कुछ समय बाद उनकी आयुधशालामें चक्ररत्न प्रकट हुआ जिससे उन्हें अपने आपको चक्रवर्ती होनेका निश्चय हो गया। चक्ररत्न प्रकट होनेके बाद ही वे असंख्य सेना लेकर दिग्विजयके लिये निकले और क्रम क्रमसे भरत क्षेत्रके छहों खण्डोंको जीतकर हस्तिनापुर वापिस आ गये। वे चौदहरल और नो' निधियोंके स्वामी थे समस्त राजा उनकी आज्ञाको फूलोंकी माला समझ कर हर्ष पूर्वक अपने मस्तकों पर धारण करते थे। चौदह रत्नोंमेंसे चक्र, छत्र, तलवार और दण्ड ये चार रत्न आयुधशालामें उत्पन्न हुये थे । काकिणी चर्म, और चूणामणि ये श्रीगृहमें प्रकट हुए थे। पुरोहित, सेनापति, :स्थपति और गृहपति हस्तिनापुरमें ही मिले थे। तथा पहरानी हाथी और घोड़ा विजयाधं पर्वतसे प्राप्त हुए थे। नव निधियां भी पुण्यसे प्रेरित हुये इन्द्रने इन्हें नदी और सागरके समागमके स्थान पर दी थी। इस तरह चक्रधर भगवान् शांतिनाथ पच्चीस हजार वर्ष तक अनेक सुख भोगते हुये राज्य करते रहे । एक दिन वे अलङ्कार गृहमें बैठकर दर्पणमें अपना मुंह देख रहे थे कि उसमें उन्हें अपने मुंहके दो प्रतिबिम्ब दिखाई पड़े। मुँहके दो प्रतिविम्ब देख कर वे आश्चर्य करने लगे कि यह क्या है ? उसी समय उन्हें आत्मज्ञान उत्पन्न हो गया जिससे वे पूर्वभवकी समस्त बातें जान गये। उन्होंने सोचा कि 'मैंने
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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