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________________ * चौबीस तीर्थङ्कर पुराण * १०३ बाबा - - - MARATI memocrNEE - प्रतिदिन रत्नोंकी वर्षा होने लगी। साथमें और भी अनेक शुभ शकुन प्रकट हुए जिन्हें देखकर भावी शुभकी प्रतीक्षा करते हुए राज दम्पती बहुत ही हर्षित होते थे। इसके अनन्तर महारानी सिद्धार्थाने वैशाख शुक्ल पष्टीके दिन पुनर्वसु नामक नक्षत्रमें रात्रिके पिछले पहरमें सुर कुजर आदि सोलह स्वप्न देखे और अन्तमें अपने मुखमें एक श्वेत वर्ण वाले हाथीको प्रवेश करते हुए देखा। सवेरे खयम्बर महाराजने उनका फल कहा, प्रिये। आज तुम्हारे गर्भ में स्वर्गसे चय कर किसी पुण्यात्माने अवतार लिया है-नौ माह बाद तुम्हारे तीर्थंकर पुत्र होगा। जिसके बल, विद्या, वैभव, आदिके सामने देव देवेन्द्र अपना माथा धुनेंगे। पतिके मुहसे भावी पुत्रका माहात्म्य सुनकर सिद्धार्थके हर्षका पारावार नहीं रहा। उस समय उसने अपने आपको समस्त स्त्रियोंमें सारभूत समझा था। गर्भमें स्थित तीर्थकर चालकके पुण्य प्रतापसे देव कुमारियां आ आकर महाराणीकी शुश्रूआ करने लगी और चतुर्णिकायके देवों ने आकर स्वर्गीय वस्त्रा भूषणोंसे खूब सत्कार किया, खूब उत्सव मनाया, ग्वूय भक्ति प्रदर्शित की। धीरे धोरे जब गभके दिन पूर्ण हो गये तब रानी सिद्धार्थाने माघ शुक्ला द्वादशीके दिन आदित्य योग और पुनर्वसु नक्षत्रमें उत्तम पुत्र उत्पन्न किया । देवों ने मेरु पर्वत पर ले जाकर रमणीय सलिलसे उनका अभिषेक किया। इन्द्राणोने तरह तरहके आभूषण पहि नाये। फिर मेरु पर्वतसे वापिस आकर अयोध्यापुरीने अनेक उत्सव मनाये । राजाने याचकों के लिये मन चाहा दान दिया। इन्द्र ने राज-बन्धुओ को सलाह से बालकका अभिनन्दन नाम रक्खा । बालक अभिनन्दन अपनी बाल चेष्टाओं से सबके मनको आनन्दित करता था इसलिये उसका अभिनन्दन नाम सार्थक ही था । जन्म कल्याणका महोत्सव मनाकर इन्द्र वगैरह अपने अपने स्थानों पर वापिस चले गये। पर इन्द्रकी आजास बहुतसे देव चालक अभिनन्दन कुमारके मनो विनोदके लिये वहीं पर रह गये । शंभवनाथके बाद दश लाख करोड़ सागर बीत चुकने पर भगवान् अभिनन्दन नाथ हुए थे। उनकी आयु पचास लाख पूर्व की थी, शरीरकी ऊंचाई तीन सौ पचास धनुष की थी और रंग सुवर्णकी तरह पीला था, उनके शरीरमें सूर्यके समान तेज़ निकलता DIRECE MEDIEEERIOMAamoonam -
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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