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________________ १८ - * चौबीस तीर्थङ्कर पुगण * सम्बन्धी कोई कष्ट नहीं हुआ तब कार्तिक शुक्ला पौर्णमासीके दिन मृगशिर नक्षत्रमें पुत्र रत्न उत्पन्न हुआ। पुत्र उत्तन्न होते ही आकाशसे असंख्य देव सेनाएं श्रावस्ती नगरीके महाराज दृढ़राज्यके घर आई। इन्द्रने इन्द्राणीको भेजकर प्रसूति गृहसे जिन बालकको मंगवाया। पुत्र रत्नकी स्वाभाविक सुन्दरता देखकर इन्द्र आनन्दसे फूला न समाता था। आई हुई देव सेनाओंने पहलेके दो तीर्थकरोंकी तरह मेरु पर्वतपर ले जाकर इनका भी जन्माभिषेक किया। और वहांसे वापिस आकर पुत्रको माता पिताके लिये सौंप दिया। बालकको देखने मात्रसे ही शम् अर्थात सुख शान्ति प्राप्त होती थी इसलिये इन्द्रने उसका शंभवनाथ नाम रक्खा था। शंभवनाथ अपने दिव्य गुणोंसे संसारमें भगवान कहलाने लगे। देव और देवेन्द्र जन्म समयके समस्त उत्सव मनाकर अपने अपने स्थानोंपर चले गये। ___भगवान शंभवनाथ दोयजकी चन्द्रमाको तरह धीरे-धीरे बढ़ने लगे। वे अपनी बालसुलभ अनर्गल लीलाओंसे माना, पिता, बन्धु, बान्धयों को हमेशा हर्षित किया करते थे। उनके शरीरका रंग सुवर्णके समान पोला था। भगवान अजितनाथसे तीस करोड़ वर्ष बाद उनका जन्म हुआ था। इस अन्तरालके समय धर्मके विषयमें जो कुछ शिथिलता आ गई थी वह इनके उत्पन्न होते ही धीरे-धीरे विनष्ट हो गई। ___इनकी पूर्ण आयु माठ लाख पूर्वको थी और शरीरकी ऊंचाई चार सौ धनुष प्रमाण थो । जन्मसे पन्द्रह लाख पूर्व बीत जानेपर इन्हें राज्य विभूति प्राप्त हुई थी। इन्होंने राज्य पाकर अनेक मामयिक सुधार किये थे । समयकी प्रगति देखते हुए आपने राजनीतिको पहलेसे बहुत कुछ परिवर्तित और परवर्धित किया था। पिना दृढ़राज्यने योग्य कुलीन कन्याओंके साथ इनका विवाह किया था इसलिये वे अनुरूप भार्या ओंके साथ संसारिक सुख भोगते हुए चवालोस लाख पूर्व और चार पूर्वाङ्कतक राज्य करते रहे। - एक दिन वे महलकी छतपर बैठे हुए प्रकृतिकी सुन्दर शोभा देख रहे थे कि उनकी दृष्टि एक सफेद मेघपर पड़ी। क्षण एकमें हवाके वेगसे वह मेघ विलीन हो गया कहींका कहीं चला गया। उसी समय भगवान शंभवनाथके
SR No.010703
Book TitleChobisi Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherDulichand Parivar
Publication Year1995
Total Pages435
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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