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________________ (३५) सहाय देती है इससे धर्मास्ति काय की अनन्ती पर्याय है, ऐसे ही अधमास्ति और आकाशास्तिकायको गुनों की अनन्ती पर्याय जानना, अब इन तीनों को तीनं तीन भेद करके बताते हैं खंध देश प्रदेश, सर्व धर्मास्ति का प्रदेशों का समूह है, वो तो संध है, दो प्रदेशों से एक प्रदेश कम तक देश है, और एक प्रदेश प्रदेश है, दोय प्रदेशों से कम देश नहीं होता और एकप्रदेश कम वाकी प्रदेशों को खंध नहीं कहा जाता, अव एक प्रदेश का मान बताते हैं पुद्गलास्ति कायसे एक प्रदेश अलग हुषा उसे परमाणु पुद्गल कहते हैं याने उस्कृष्ट अणु छोटे से छोटा है वो काटने से कटता नहीं और पीसने से पिसता नहीं ऐसा सूक्षम एक परमाणुहे उतनाही धर्मास्तिकायका एक प्रदेशहै, ऐसेही - मर्मास्ति आकाशास्ति का जानना, तात्पर येक परमाणू येक प्रदेश तुल्य है, अस्त कल्पना द्रष्टान्ति देके कहते हैं कोई पुरुष येकपरमाणु से धर्मास्ति को नांपैतो असंख्यात प्रदेशहोय ऐशेही अधर्मास्ति के असंख्यात प्रदेश, इन्सही तरह आकाशास्ति के अनन्त प्रद शहों, अब काल पदार्थ का वर्णन करते हैं। ॥ ढाल तेहिज ॥ .. .. काल अजीव छै तेहनां, द्रव्य कहया छै अनन्तजी। निप्पन्ना निपजै निपजसी बलि, त्यांरो कदेहन श्रावसी अन्तजी.॥ हिव ।। २२ ॥ गये काल - नन्ता समया हुश्रा, वर्तमान समय येक जाणजी। श्रागमिये काल अनन्ता समां हुसी, इमकाल द्रव्यनें पिछाणनी ॥ हिव ।। २३ ।। काल द्रव्य निपजवा प्रांसरी, तिणने सास्वतो कहयो जिन. रायजी। उपजै नें विणसें तिण अांसरी प्रसास्वतो
SR No.010702
Book TitleNavsadbhava Padartha Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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