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________________ (३४) असंख्यात प्रदेशी धर्मास्ती। अधर्मास्ती इमहिज जांणजी। इम अनन्ता श्राकाशास्ती कायनां, प्रदेश इणरीत पिछाणजी ॥ हिवे ॥ २१ ॥ ॥ भावार्थ ॥ अब अजीव पदार्थ को पोलखाते हैं, अजीव पांच प्रकारक हैं धर्मास्ति १ अधर्मास्ति २ आकाशास्ति ३ काल ४ पुद्गलास्ति ५ यह पांच अजीवहै, इनमें चार तो अरूपी हैं जिन में वर्ण रस गंध स्पर्श नहीं है, और एक पुद्गल द्रव्य रूपी है, धर्मास्ति काय का धर्म याने स्वभाव चलते हुये जीव पुद्गलों को चलने का सहाय देने का है, चलने का प्रति पक्ष स्थिर है इसलिए अधर्मास्ति का यका स्वभाव स्थिर को स्थिर सहाययी है, और आकाशास्ति का स्वभाव अवकास देने का है यह ती स्वयं स्थिर है, यह तीनों छती वस्तु है इस से इन को श्रास्ति कही है याने समझाने को सिर्फ कल्पना करके ही नहीं कहेहैं, धर्मास्ति अधर्मास्ति पाकाशास्ति यह तीनूं ही अजीव द्रव्य निश्चय अरूपी हैं जैसे धूप छाया वत् जानना और यह सप्रदेशी याने प्रदेश सहित समूह है इस वास्ते इन्हें काय कही है, इन तीनों में धर्मास्ति काय अधर्मास्ति काय तो.चौदह राजु लोक प्रमाण असंख्यात प्रदेश हैं और आकाशास्ति काय लोकालोकप्रमाण अनन्त प्रदेशी हैं, तथा यह तीनूं ही काल में सास्वते हैं इनके गुण पर्याय अपने २ अलग २ हैं कभी भी पलटते नहीं हैं याने परस्पर कभी भी मिलते नहीं तथा यह तीनों द्रव्य हलते चलते नहीं हैं, पांच द्रव्योमें जीव और पुद्गल सिर्फ दोही द्रव्य हलते चलते हैं, जिन्हों को सहाय धर्मास्ति कायकाहै, जीव पुद्गल स्थिर रहैं उन्हों को सहाय अधर्मास्ति काय का है, और भाजन याने अवकास गुण देना श्राकाशास्ति काय का है, परन्तु ऐसा कभी भी नहीं होता कि धर्मास्ति का गुण चलन सहायर्या है सो पर्याय पलट के कालान्तर में स्थिर सहायी होजाय अथवा भाजन सहायी होजाय ऐसेही अ. धमास्ति की और आकाशास्ति की पर्याय नहीं पजटती है, ध. .. मास्ति काय चलते हलते अनन्त जीवों को और अजीवो का
SR No.010702
Book TitleNavsadbhava Padartha Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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