SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१२५) ॥ भावार्थ ॥ निरजराकी करणी निरवद्य करते वक्त जीवके सर्व प्रदेश च. लायमान होतेहैं तव अनन्त कर्म प्रदेशोंके पुलके पुज प्रातम प्रदेशौसे क्षय अर्थात् अलग होते हैं वोतो निरजरा याने निरमला जीव है और उसकी करणी करते संचर नाम कर्मोदय से जीव के उदय भाव निप्पन्न होने से भले जोगोंकी वर्तनां होती है तव पुण्यमयीशुभकर्मों को जीव अहिता है सो श्राश्रव है, तात्पर मन बचन कायाके शुभयोगों से निरजरा होती है इसलिये तो निरजरा की करणी में यह गर्भित है सोनवपदार्थों में छटा निरजरा पदार्थ जीव है, और इन्हीं योगौसें पुण्य ग्रहण होते हैं जिससे पांचमां श्राश्रव पदार्थके बोलों में है, कौंको करता है सोही पाश्रव जीव है, मन वचन कायाके जोगोंको प्रसस्त अप्रसस्त कहा है प्रसस्त जोगतो पुण्यके द्वार हैं और अप्रसस्त जोग पापके द्वार है, प्रसस्तं द्वारोंको तो शास्त्र में उदीरणा अर्थात् उद्यम करिके उदय में लाना और अप्रसस्त द्वारोंको कंधना अर्थात् बंध' करना कहा है, उदीरतां या रूंधता निरजराहो सोतो निर्जराकी करणी है, और उदय भावके जोग वर्तते हैं जिन्होंसे कर्म ग्रहण होते हैं वोह भाव जोग आश्रव है, श्री उघवाई सूत्र में प्रसस्त अप्रसस्त जोगोंके यासट भेद कहे हैं, तथा भगवतने सतरह भेद संजम कहा है असंजम है सो अव्रत है और अबत है सो आश्रव है, मांठे २ कर्तव्य और करणी यह जीवका व्यापार है, मोह कर्मके उदयसे च्यार संशा है सो,जीव है जिससे पाप.कर्म लगता है, तथा उट्ठाण कम्म (कर्तव्य ) बल बीर्य पूर्षाकार प्राक्रम को श्रातमा कही है, सावध है सो तो पापके करता है और निरबध है सो पुण्यके करता है, करता है सोही पाश्रव है, संयती१ असं. यती २ संजतासंजती ३, बची १ अवती २ व्रताव्रती ३, पचखानी १ अपचनानी २ पचखानापचखानी ३, पण्डिता १ बाला२ चालापण्डिता ३, जागरा १ सूता २ जागरा सता ३, संबूडा १ असंवूषा,२ संबूडा असंयूडा ३, धर्मी १ अधर्मी २ धर्माधर्मी ३,
SR No.010702
Book TitleNavsadbhava Padartha Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy