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इस संबूडा असंबूडा नें संबूडा अबूडा । धम्मि या अमिया नांमोरे | धम्मवचसाईया इम हिज जाणों | तीन तीन बोल है तांमोरे ॥ श्रा ॥ ५४ ॥ ये सघला वोल छै श्राश्रव नें संवर त्यांनें रूडी रीत पिछाणों रे । केई श्राश्रव नें
जीव श्रद्धै छै । ते पूरा है मूढ श्रयाणोंरे || आ ॥ ५५ ॥ श्राश्रव घटियां संवर वधै छै । संवर घटियां आश्रव वधायोंरे । किलो द्रव्य वधियो किसो द्रव घटियो । इा ने रूडी रीत पिछाखरे ॥ श्र ॥ ५६ ॥ श्रवत उदय भाव जीवरा घटियां | व्रत बधै क्षयोपस्म भावो रे । ये जीवतणां भाव घटियां नें बधियां । श्राश्रव जीव कह्यो इण न्यायो रे || श्रा ॥ ५७ ॥ इम सवेरे भेदे - संजम ते व्रत श्रव । ते श्रव निश्चय जीव जाणोंरे | खतरे भेद संजम नें संबर को जिन । ते जीवरा लक्षण पिछाणों रे ॥ ॥ ५८ ॥
श्रव में जीव श्रद्धावणं कार्जे | जोड कीधी पाली शहर मकारों रे । सम्वत् अठारह पचाव न वर्षे आसोज सुद चौदश भौमवारो रे ॥ श्र ॥ ५६ ॥
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इति पंचम प्रश्रव पदार्थ की जोड़ खामी श्री श्रीपनजी कृत ।
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