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________________ कविवस्वनारसीदासः। हृदय इन बेचारोंकी कथा सुनके पिघल आया। उन्होंने कहा अच्छा आज रातभर आप लोग यहां आनन्दसे रहो, हम अपने घर जाके सोवेंगे । परन्तु इतना ध्यान रखना कि, सवेरे नगरका हाकिम आवेगा, वह बिना तलासी लिये नहीं जाने देगा, इस लिये में उसे कुछ दे लेके राजी कर लेना । चौकीदार चले गये, इन लो गोने पानी लाके हाथ पैर धोये, गीले कपडे सूखनेको डाल दिये और अयाल बिछाके सबके सब विश्रामकी चिन्तामें लगे। लोगोंकी ऑन्न झपती ही जाती थीं, कि इतने एक जबर्दस्त आदमी आया, और लगा डॉट डपट बतलाने । तुम लोग किसके हुक्मसे यहां आये ? कौन हो? यहाँसे अव शीघ्र चले जाओ, नहीं तो अच्छा नहीं होगा इत्यादि । इस नवीन आपजिसे भयभीत होके चारे उठ बैठे, और विना कुछ कहे सुने चलने लगे । परन्तु इन लोगोंकी तत्कालीन दशा देखके पत्थर भी पसीनता था, नवागन्तुक तो आनी ही था। से इनके सीधेपनको देखके उससे न रहा गया, जाते हुए लौटा लिया और अपना एक टाट बिछानेको दे दिया। चौकीम जगह इतनी थोडी थी कि, सोना तो दूर रहा, चार आदमी सुमीतसे बैठ भी नहीं सकते थे। तब टाटपर नीचे तो दुखिया बनारसी तथा उनके साथी सोये और ऊपर खाट विछाके नवागन्तुक अपवे पांच २ फैलाके सोया! समय पडनेपर इतनी ही गनीमत है! क्यों त्यों रात्रि पूरी हो गई, सबेरे देखा तो, वर्षा बंद हो चुकी थी, आकाश निखरके निर्मल हो गया था। उठके अपनी २ गाड़ियोंपर आये, ॐ और मार्गका सुमीता देखके गाडी चला दी। आगरा निकट आ गया । धनारसीदासजी सोचने लगे, कहां जाना चाहिये ? माल कहां में उतरावा चाहिये और मुझे कहां ठहरना चाहिये ? क्योंकि उन्हें PARIYARAMPARAN stateautikrketetetitutekickakketstatuttituttituirtituttink.krketitutetitutitutkatrika
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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