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________________ tak tertentu tertentu tetetstestatatetrto tontista tertention to जैनग्रन्थरत्नाकरे दो मुद्रिका, चौवीस माणिक, चौतीस मणि, नी नीलम, वीस पन्ना और चार गांठ फुटकर चुनी, इस प्रकारतो जवाहिरात, और २० मन धीव, दो कुप्पे तैल, दौ सौ रुपयाका कपडा इस प्रकार माल और कुछ नकद रुपया देकर व्यापारके लिये आगराको जानेकी आना दी। पुत्रने आज्ञा शिरोधार्य करके सब माल गाड़ियोंपर लदाके अनेक साथियोंके साथ आगरेकी यात्रा कर दी । प्रतिदिन ५ कोसके हिसाबसे चलके गाड़ियां इटावाके निकट आई, वहां मंजिल पूरी हो जानेसे एक ऊजड़ स्थानमें डेरा डाल दिया। थोडे । समय विश्राम कर पाये थे, कि मेघ उमड़ आये, अंधकार हो । गया, और लगा मूसलधार पानी बरसने ! साथके सब लोग गाड़ियां छोडके इधर उधर भागने लगे । कुछ लोग पयादे होकर शहरकी सरायमें गये, परन्तु सरायमें कोई उमराव ठहरे हुए थे, है। इससे स्थान खाली नहीं मिला । बाजारमें भी कोई जगह खाली नहीं देखी, आंधी और मेघकी झड़ीके मारे घर २ के कपाट वन्द थे, कहीं खड़े होनेका भी ठिकाना नहीं पड़ा । कविवर भी कहते हैं फिरत फिरत फावा भये, वैठन कहै न कोय । ॐ तले कीचसों पग भरें, ऊपर वरसत तोय ॥ २९४ ॥ + अंधकार रजनी विणे; हिमरितु अगहनमास। नारि एक बैठन को पुरुष उठ्यो लै बाँस ! ॥ २९६॥ नगरमें जब रातनिकालनेका कहीं भी ठीक न पडा, तब लाचार होके गोपुरके पार एक चौकीदारकी झोपडी थी, वहां आये, और चौकीदारोंको अपनी सब आपत्ति कह सुनाई। चौकीदारोंका ATTA kataratnakarakattadantarintikithananda
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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