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________________ Statt.ttttatothiatiotistt.ttituttttitute • जैनग्रन्यरत्नाकरे हा व्यापारके लिये घरसे बाहिर निकलनेका यह पहिला ही अवसर था। शनिदान चित्तमें कुछ निश्चय करके गाडियोंको पीछे छोड आप है मोतीकटलेमें पहुंचे ! आपके छोटे बहनेउ, धन्दीदासजी चांपसीके घरके पास रहते थे, उन्हींके यहां गये । वहनेऊने सालेका यथोचित सत्कार किया। दो चार दिनमें बहनेऊकी सम्मतिसे एक दूसरा मकान किराये से लिया और उसमें सव माल असवाच । रखके वेचना वर्चना आरंभ कर दिया। पहिले कपडा बेचके उसका हिसाव तयार किया तो, याजमूल देके कुछ घाटा रहा, पश्चात् धीव तैल बेचा, उसका भी यही हाल हुआ, केवल चार रूपया लाममें रहे । कपडा और घी तैलकी विक्रीका रुपया हुंडीसे जौनपुर मेज दिया और सबके पीछे जवाहिरातपर हाथ लगाया । बनारसीदास व्यापारसे अभी तक एक तो प्रायः अनमिन थे, दूसरे आगरेका व्यापार! | अच्छे २ ठगा जाते है, इनकी तो बात ही क्या थी। जिस तिसको साधु असाधुकी जांच किये बिना ही आप जवाहिरात दे देते थे, और उसके साथ जहां चाहे तहां चले जाते थे। जौहरियोंके लिये यह वर्ताव बड़े । धोखेका है। परन्तु अच्छा हुआ कि, किसी लुचे लफंगेकी दृष्टि नहीं पड़ी । तो मी अशुम कर्मका उदय था, इजारबन्दके नारेमें कुछ छूटा जवाहिरात बांध लिया था, वह नमालूम कहां खिसककर गिर गया। माल बहुत था, इससे चोट भी गहरी लगी, परन्तु किसीसे कुछ कहा नहीं । आपत्तिपर आपत्तियां प्रायः माती हैं। किसी कपड़े कुछ माणिक बंधे थे, वे डेरे रस्खे थे उन्हें चूहे कपडे समेत ले गये दो जडाऊ पहुंची किसी शेठको वैची थी, दूसरे * दिन उसका दिवाला निकल गया! एक जडाऊ मुद्रिका थी, वह Attitutattitut.titute tattitutekest.titutitutatuti.kastatitut.k.ketitutekuttekakattitutitutte
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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