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________________ H rokkatkhatee.tattattatottest.tattateststatutte ५२ कविवरवनारसीदासः।। . .. ........maan mmmmmmm.. . . . . .... भले वस्त्र अरु भूपन मले। ते सव गाढे धरती तले॥ घर घर सनि विसाहे शन। लोगन पहिरे मोटे वन ।। टाढो कंबल अथवा खेस। नारिन पहिरे मोटे बेस ॥ ऊंच नीच कोउ न पहिचान । धनी दरिखी भये समान। चोरि घाढ़ दीसै कहुं नाहिं। यों ही अपभय लोग डराहि ॥ २५५ ॥ यह अशान्तिकी हवा दश बारह दिन बडे जोर शोरसे चलती रही। तेरहवें दिन शान्तिसूचक बादशाही चिहियां आई और घर २ वांट दी गई । चिट्ठियां बांटते ही अशान्तिने विदा ले ली। सन्नाटा खिंच गया । घर र जयजयकार होने लगा । जो धनी और गरीबोंका भेद उठ गया था, वह अब फिर आ डेटा । धनि३ योके वस्त्र वेष चमचमाने लगे, बेचारे दरिद्री भीख मांगते हुए। नजर आने लगे । चिट्ठीमें समाचार इस प्रकार थे प्रथम पातशाही करी, बावनवरप जलाल। अव सौलहसै चासहै, फार्तिक हूओ काल । अकवरको नन्दन बड़ो, साहिव शाह सलेम । नगर आगरेमें तखत, बैठो अकवर जेम ॥ २६८ ॥ १ अकवरका नाम जलालउद्दीन था। kikkukkutekuttikkuteketaketituttakulatakkritiketrintereakkukkutituttitute ttatrkex.k.xxx.kuta.kakke3.3.3.3.kizukrtzukurautkukkukutrkukuttrkute -
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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