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________________ 达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达對 जैनप्रन्धरलाकरे ५१ चार दिनसे अधिक नहीं ठहरा । इसी समय वनारसीदासके पुत्र हुआ। परन्तु उसकी भी वही दशा हुई। संवत् १६६२ के कार्तिकम बादशाह जलालुद्दीन अकबरकी मृत्यु आगरामें हो गैई । यह खबर जिस समय जौनपुरमें आई, प्रजाके हृदयमें असीम याकुलताका उदय हुआ। इस आकुलताके अनेक कारण थे। एक तो आजकलकी नाई उस समय एक सम्बाट्का शरीरपात हो जानेपर दूसरा सम्राट शान्तिवाके साथ राज्यासनपर नहीं बैठ सका था । विना खूनखराबी हुए तथा प्रजापर नाना अत्याचार हुए बिना बादशाहत नहीं बदलती। दूसरे मुसलमानोंमें अकवर सरीखे प्रजानिय वादशाह बहुत थोड़े महोते थे। यद्यपि अकवरकी राजनीति अतिशय कूट कही जाती है, परन्तु प्रजा उसके राजत्वकालमें दुःखी नहीं रही, यह निश्चय है। आन उस प्रजावत्सल नरनाथकी परलोकयात्रासे प्रजा अनाथ । हो गई। चारों और कोलाहल मच गया। लोगोंको विपत्ति मुंह फाडके मय दिखाने लगी । सबने अपनी २ जमा पूंजीकी रक्षा चित्त लगाया घर घर दर दर दिये कपाट । हटवानी नहिं बैठे हाट। हँडबाई (१)गाढी कई और। नकद माल निरभरमी और। TEE Rt-kutstatuteketik-kastatstitutkukrt.itaktutiketaketaketikoteketstrekkitatituttitutitute १ अकवरका देहान्त कार्तिक सुदी १४ संवत् १६६२ मंगलवारकी रात्रिको हुआ था, और दूसरे दिन बुधवारको उत्तरक्रिया हुई थी।
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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