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________________ tantatuttototaktetattatretstaketakattitutikatta जैनग्रन्थरत्नाकरे ५३ नाम धरायो नूरदी, जहांगीरसुलतान । * फिरी दुहाई मुलकमें, जहँ तहँ वरती आन ॥२६९॥ कविवर वनारसीदासजीका हृदय बहुत कोमल था, वे अकबरके धर्मरक्षादि गुण सुनकर बहुत प्रशंसा किया करते थे। अकवरकी मृत्युको खबर जिस समय जौनपुर आई, उस समय ये घरकी सीढ़ीपर बैठे हुए थे, सुनते ही मूर्ती आ गई । शरीर सीढीसे नीचे दुलक गया, माथा फूट गया, खून बहने लगा और उसमें कपडे सराबोर हो गये । माता पिता दोडे हुए आये, पुत्रको गोदमें उठा लिया । पंखा करके पानीके छाँट डालके मूळ उपशान्ति की गई घावमें कपडा जलाके मर दिया गया।थोडे समयमें अच्छे हो गये। नवीन बादशाहके तिलककी खुशीम घर २ उत्सव मनाया गया। राज्यभक्त प्रजाने भिखारियोंको बहुत सा दान दिया। पाठकोंको स्मरण रहे कि, अभी तक सदाशिवकी पूजन निरंतर से हुआ करती थी, उसमें बनारसीने कमी भूल नहीं की। उस दिन एकान्तमें बैठे २ सोचने लगे।... जय में गिख्यो परयो मुरझाय । तव शिव कछु नहिं करी सहाय! ॥ 1 इस विकट शंकाका समाधान जब उनके हृदयमें न हुआ, तब उन्होंने सदाशिवजीका आसन कहीं अन्यत्र लगा दिया, और पूजन करना छोड दिया । वनारसीके नानारसी हृदयने इस समयसे ही पलटा खाया। उनके शरीरमेंसे वालकपन कभीका निकल गया अथा। युवावस्था विराजमान थी। विद्यादेवीने युवावस्थाकी सहचरी उन्मत्ततासे बहुत झगडा मचा रखा था, परन्तु कुसंगति और ART YRET Hattitutitiatrikakokuttitutiktatuteketakikattatuttrakuttttituterukuntukutkuraket Pattitutkukkukikikikikikutakikikikikekukikskaituteiskotukikikikikikikikikikakakakakiran
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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