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________________ maaaaaaaaaaanwwwwinimawwwmnirammawwanimaseemarwa duawer Katkeketakikattituttarkutt.kuttakatrikakakakakakakk-kuttituttituttatrkakotukutkutta Fitkat.kkatthatakstatutet.t.totket.tatttotstatutters जैनग्रन्थरताकरे मत्तगयंद । पुण्य संजोग जुरे रथ पायक, माते मतंग तुरंग तबेले । मान विमौ अँग यो सिरमार, कियो क्सितार परिग्रह ले ले। बंध बढ़ाय करी थिति पूरण, अंत चले उठ आप अकेले । हारि हमालकी पोटसी डारिके, और दिवारकी ओट है खेले १ ० . छप्पय है. धान यान मिष्टान, मोम मादक नवनिजै । ___ लवण हिंगु घृत तैल, वनिजकारण नहिं लिजै ॥ पशुमाड़ा पशुवणिज, शस्त्र विक्रय न करिजै । जहां निरन्तर अमि करम, सो वणिज न किज्जै ॥ * मधु नील लाख विप वणिज तज, कूप तलाव न सोखिये। लहिये न धरम गृह वासवस, हिंसक जीव न पोखिये ॥११॥ मुकताको स्वामी चन्द मूंगानाथ महीनन्द __गोमेदक राजा राहु लीलापति शनी है। केतु लहसुनी सुरपुष्प राग देव गुरु, ___ पन्नाको अधिप वुध शुक्र हीरा धनी है । याही क्रम कीजे घेर दक्षिणावरत फेर, ___ माणिक सुमेरवीच प्रभु दिन मनी है। आठों दल आठ ओर, करणिका मध्य ठोर कौलकेसे रूप नौ गृही अनूप बनी है ॥ १२ ॥ बालक दशाकी मरजाद दश वरस लों, वीस लों वदति तीसलों सुछबि रही है || Ft.tt.titutitutitutitutitutkuz...X.Xatukuktikrit.tut.t.titutext.titututatatitstitute
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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