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________________ Uttattatok kutkukkuteketakkarketrkestatutet totket textutekikikattackokutakaluktikrit वनारसीविलासः २०५ । धीरज तात क्षमा जननी, परमारथ मीत महारुचि मासी। ज्ञान सुपुत्र सुता करुणा, मति पुत्रवधू समता अतिभासी ॥ उद्यम दास विवेक सहोदर, बुद्धि कलत्र शुभोदय दासी । ॐ भाव कुटुंब सदा जिनके ढिग, यो मुनिको कहिये गृहवासी ||७| मनहर। मानुष जनम लयो सम्यक दरश गह्यो, ___ अजहूं विष विलास त्याग मन वावरे । संपति विपति आये हरस बिषाद छोड़, ताही और पीठ ओड़ जैसी बहै वावरे ।। भौथिति निकट आई समता सुथाह पाई, ___ गयो है निघटि जल मिथ्यात डुबावरे । टैगो करम फास छूटैगो जगत बास, केवल उदै समीप आयो परेवा वरे ॥ ८ ॥ (पादान्तयमक) जामें सदा उतपात रोगनसों छीजै गात, ___ कळू न उपाय छिन छिन आयु खपनो। कीचे बहु पाप औ नरक दुख चिन्ता व्याप, __ आपदा कलापमें विलाप ताप तपनो ॥ जामें परिगहको विषाद मिथ्या वकवाद, विभोग सुखको सबाद जैसो सपनो। ऐसी है जगतवास जैसो चपला विलास, ___तामें तूं मगन भयो त्याग धर्म अपनो ॥ ९॥ Rukkeuzukkukkutekukurkutekakakakakakkukukkutakuttituteketsexkakakakikatukatutekke
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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