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________________ Attitatistirist.tatistiiiiiiiittttity जैनग्रन्थरलाकरे REAroastantritten Patest tetakrkat.katrkutkrketinkeket-krt.krt-totrk-kit-trkakokutrkrkutetst-tattikatrket.it औ जन्त करली! अनायिनी और भी अनाधिनी होगई । मुगलमादार की निर्दयताका कुछ ठिकाना या ? मरको मार माह मदार म अनाविधवा इस घोर विपत्तिको वहां रहकर सहन न कर नकी, और अनाव बालकको पीठपर बॉयक पूर्वदशकी ओर चल पड़ी। * और नानाप्रकारके पथसंकटोंको झेलती हुई, कुछ दिनोंक पश्चात् । जौनपुर माहरमें पहुंची। जौनपुरमें अनापिनीका पीहर था। यहां के प्रतिष्ठित रहीस चिनालिया गोत्रज मदनसिंहजी जौहरी की यह भतीजी थी। मदनसिंहजी पुत्रीको पाकर प्रसन्न हुए और उसकी दुर्दशा सुनकर बहुत दुःखी हुए। पीछ दिलासा देके पुत्रीको सम-, आया कि, एक पुत्रसे सब कुछ हो नचा है, सुनगुःख वृक्षको छायाके समान हैं। पुत्र की रक्षा कर और नुनमे रह । यह घर द्वार मव तेरा है। - जौनपुर गोमती नदी के किनारे बसा हुआ है । पटान बंशोझव । जोनाशाह सुन्द्रतानने इस नगरको बसाया था। इस कारण इसका नाम । जीनपुर हुआ । उस समय जौनपुरराज्यका विस्तार पूर्वनें पटना है पश्चिममें इटावा दक्षिण में विंध्याचल और उत्तर हिमालय तक था। कविवरने इस नगरका वर्णन स्वतः देन्बुकर बहुत लिना है। * परन्तु विस्तारमयसे हम उसे छोडे देते हैं, और बादशाहों की नामावली जो एक जानने योग्य विषय है, लिख देते हैं, प्रथमशाह जोनाशह जानि । दुतिय ववक्कर शाह रखानि ॥ ३२॥ त्रितिय भयो सुरहरसुलतान । चौथो दोस्तमुहम्मद जान ॥ tirtattatrtraittentinkanainitatuthentintestat-11 - PM COM SIYAYY - - - माग्न + + - + - + 4 .
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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