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________________ statutetattatattatttttttttttttttistiane २२ कविवरबनारसीदासः ।। शाह हुमायूंको वरंबीर ॥ १५॥ मूलदासजी उक्त नरवर नगरमें शाहीमोदी वनकर गये और अपना कार्य प्रतिष्ठापूर्वक करने लगे। कुछ दिनके पश्चात् अर्थात् सावन सुदी ५ रविवार संवत् १६०२ को आपको एक पुत्ररत से प्राप्त हुआ । जिसका नाम खरगसेन खखा । दो वर्षके पश्चात् । धनमल नामके दूसरे पुत्रने अवतार लिया । परन्तु तीन वर्ष जीवित रहके,धनमल धेनदल उडि गये, कालपवनसंजोग। मातपितातरुवर तये, लहि आतप सुतसोग ॥ १९ ॥ । घनमलके शोक को मूलदासजी झेल नहीं सके और संवत् । १६१३ में पुत्र के कुछदिन पीछे पुत्र की गति को प्राप्त हो गये। मूलदासकी मृत्युके पश्चात् उनकी स्त्री और बालक दोनों अनाथ हो गये, अनाथिनीको पति के बिना संसार स्मशान सा दिखने लगा परन्तु इतनेसे ही कुशलता न हुई। मुगलसरदार मूलदासका काळ सुनकर आया, और उसने इनका घर खालसा करके सब जायदाद नासिरमिरजा और गवालियरमें अवुलकासिम हाकिम था। नरवर गवालियरके नीचे था, सो वहां कोई मुगलहाकिम रहता होगा, जिसके मोदी बनारसीदासजीके दादा मूलदास थे । परन्तु संवत् १६०८ में नरवरका हाकिम मुगल नहीं पठान था, संवत् १६१३ में मुगल होगा, क्योंकि संवत् १६१२ से फिर हुमायूका राज्य दिल्लीमें हो kakkrketikkuktakutankitatuterstitutkukt.kekuttitutikattatrkkatokkkkkkkkka Stotkeutkukkautukkukat.kukkutstutitutekattitut.kutikattakuzatictukskukukkutkukkuttrakar गया था। १ अकथानककी जो प्रति हमारे पास है, उसमें वरवीर शब्दपर 'उमराव' ऐसी टिप्पणी है। * २ कदाचित् घनसे कविराजने नमका भाव रखा है।
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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