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________________ Atitit tatatatatatatatatatatatatttttttttutti बनारसीविलासः RRitiktatukutkukkrt.kekuttitokutekat.kok.kut.kakkrt.kettitutkukrt.dot.kokukrt.tkrt.kil पदपद। जिन पूजहु गुरुनमहु, जैनमतवैन बखानहु । संघ भक्ति आदरहु, जीव हिंसा नविधानहु ॥ झूठ अदत्त कुशील, त्याग परिग्रह परमानहु । __ क्रोध मान छल लोम जीत, सज्जनता ठानहु ॥ गुणिसंग करहु इन्द्रिय दमहु, देहु दान तप भावजुत ।। गहि मन विराग इहिविधि चहहु, जो जगमैं जीवनमुकता पूजाधिकार। पापं लुम्पति दुर्गति दलयति व्यापादयत्यापदं पुण्यं संचिनुते श्रियं वितनुते पुष्णाति नीरोगताम् । सौभाग्यं विदधाति पल्लवयति प्रीति प्रसूते यशः | स्वर्ग यच्छति निर्वृति च रचयत्सार्हतां निर्मिता ॥९॥ ३. मात्रा सवैया छन्द । लोपै दुरित हरै दुख संकट; आपै रोग रहित नितदेह । पुण्य भंडार भरै जश प्रगटै; मुकति पंथसौं करै सनेह ॥ अरचै सुहाग देय शोमा जग; परभव पँहुचावत सुरगेह । कुगति बंध दलमलहि वनारसि; वीतराग पूजा फल येह ॥९॥ स्वर्गस्तस्य गृहाङ्गणं सहचरी साम्राज्यलक्ष्मीः शुभा * सौभाग्यादिगुणावलिविलसति स्वैरं वपुर्वेश्मनि । संसारः सुतरः शिवं करतलकोडे लुठत्यक्षसा यः श्रद्धाभरभाजनं जिनपतेः पूजां विधत्ते जनः १० htttttttttttttttttttttttttttttttttttttt
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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