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________________ kutek.kkkkkkkkkaketaket-tek वनारसीविलास. ११ मानोपम भरता भवनासी । द्वन्दविदारण बोधविलासी ॥ कौतुकनिधि कुशली कल्याणी । गुरू गुसाँई गुणमय ज्ञानी॥५९॥ निरातंक निरवैर निरासी । मेधातीत मोक्षपदवासी ॥ * महाविचित्र महारसभोगी । प्रमभंजन भगवान अरोगी ॥६॥ कल्मपमंजन केवलदाता । धाराधरन धरापति धाना॥ प्रज्ञाधिपति परम चारित्री । परमतत्त्ववित् परमविचित्री ॥६॥ संगातीत संगपरिहारी । एक अनेक अनन्ताचारी ॥ उद्यमरूपी ऊरघगामी । विश्वरूप विजया विश्रामी ॥ १२ ॥ दोहा. kot.kotttt-krktvt.t-kot.kutt.kuttitutti Jootouttrt.tttttt.ttituttitut.tituttitutictiotstit.kitntukuttituttituttituttarks धर्मविनायक धर्मधुज, धर्मरूप धर्मज्ञ । रत्नगर्भ राधारमण, रसनातीत रसज्ञ || ६३ ॥ इति केवलज्ञानी नामक सप्तम शतक ॥ ७ ॥ रूप चौपई. परमप्रदीप परमपददानी । परमप्रतीति परमरसज्ञानी ॥ * परमज्योति अघहरन अगेही। अजित अखंड अनंग अदेही ६४॥ * अतुल अशेष अरेष अलेपी । अमन अवाच अदेख अभेपी ॥ अकुल अगूढ़ अकाय अकर्मी। गुणधर गुणदायक गुणमम्मी ६५ निस्सहाय निर्मम नीरागी । सुधारूप सुपथग सौभागी ॥ हतकैतवी मुक्तसंतापी । सहजस्वरूपी सबविधि व्यापी ॥६६॥ महाकौतुकी महद विज्ञानी । कपटविदारन करुणादानी ॥ * परदारन परमारथकारी । परमपौरुपी पापप्रहारी ॥ १७ ॥
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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