SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ sekstattatstatstotratatataketaktet-tatt-tetatist-ttis १२ जैनग्रन्थरत्नाकरे Ahhhhhhxstrt-Artituit. A Frkstutikotukutakshatikutteketaketatukit-krantit-totkekot-ttitutteket-t.kuttakakakakirtake केवलब्रह्म घरमधनधारी । हतविभाव हतदोप हतारी || भविकदिवाकर मुनिमृगराजा । दयासिंधु भवसिंधु जहाजा ॥६॥ शंभु सर्वदर्शी शिवपंथी । निरावाध निःसँग निग्रन्थी॥ यती यंत्रदाहत () हितकारी । महामोहबारन बलधारी॥६९ चितसन्तानी चेतनवंशी । परमाचारी गरमविध्वंसी ॥ सदाचरण खशरण शिवगामी । बहुदेशी अनन्त परिणामी ७० वितथभूमिदारनहलपानी । भ्रमवास्जिवनदहनहिमानी ॥ ४ चारु चिदक्षित द्वन्दातीती । दुर्गरूप दुर्लभ दुर्जीती ॥ ७१ ॥ शुमकारण शुभकर शुभमंत्री । जगतारन ज्योतीश्वर जंत्री ७२ । दोहा. जिनपुङ्गव जिनकेहरी, ज्योतिरूप जगदीश । मुक्ति मुकुन्द महेश हर, महदानंद मुनीश || ७३ ॥ इति श्रीपरमप्रदीप नाम अष्टम शतशः ॥ ८ ॥ मंगलकमला. दुरित दलन सुखकन्द । हत भीत अतीत अमन्द ॥ शीलशरणहत कोप | अनमंग अनंग अलोप ॥ ७ ॥ हंसगरम हतमोह । गुणसंचय गुणसन्दोह ॥ सुखसमाज सुख गेह । हतसंकट विगत सनेह ॥ ७५ ।। क्षोभदलन हतशोक । अगणित बल अमलालोक ॥ धृतसुधर्म कृतहोम । सत्तसूर अपूरव सोम ।। ७६ ॥ १ दूसरी पुस्तकमें 'त्रिगुणातम निज सन्दोह' ऐसा पाठ है. SAAkturistetshirtstretttttrinistrint Arth
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy