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________________ Festrickettrikketitutiricistrictertatuttit १० चैनग्रन्थरत्नाकरे t-kit-t.tttttt.tit. t totketicket-trketitutikt-t-t-t-tekkkkkkkkk.tutet-t-k-kit-kit-tetaketituttitutekrtit वृहत अन निरंश अंशगुणसिन्धु गुणालय । लक्ष्मीपति लीलानिधान वित्तपति विगतालय । चन्द्रवदन गुणसदन चित्रधर्मामुख थानक । ब्रह्माचारी वज्रवीर्य बहुविधि निरचानक ॥ ५१ ॥ दोहा. सुखकदम्ब साधक सरन, सुजन इष्टमुखवास । वोधरूप बहुलातमक, शीतल शीलविलास ।। ५२ ॥ इति श्रीपरमप्रबोधनामक पष्ट शतक ॥६॥ रूप चौपई. * केवलज्ञानी केवलदरसी । सन्यासी संयमी समरसी ॥ * लोकातीत अलोकाचारी | त्रिकालज्ञ धनपति धनधारी ॥५४| चिन्ताहरण रसायन रूपी । मिथ्यादलन महारसकूपी ॥ निर्वृतिकर्ता मृपापहारी । ध्यानधुरंधर धीरजघारी ॥ ५५ ॥ ध्याननाथ ध्यायक वलवेदी । घटातीत घटहर घटभेदी ॥ १ उदयरूप उद्धत उतसाही। कलुपहरणहर किल्विपदाही ॥५६॥ वीतराग बुद्धीश विपारी । चन्द्रोपम वितन्द्र व्यवहारी ॥ । अगतिरूप गतिरूप विधाता । शिवविलास शुचिमय सुखदाता५७।। परमपवित्र असंख्यप्रदेशी । करुणासिंधु अचिन्त्य अमेपी ॥ जगतसूर निर्मल उपयोगी । भद्ररूप भगवन्त अभोगी।।५८॥ १ 'बुद्धि सुविचारी ऐसा भी पाठ है. लपल teketest.titrkutek.kokitutet krtetntestst:t-t.kuta.kkarki.k.kr
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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