SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ kaist.tattatrkutst.totatutstatut-katinantatstaintainine ११२ कविवरयनारसीदासः । निपुन विचच्छन विबुध बुध, विद्याधर विद्वान। पटु प्रवीन पंडित चतुर, मुधी मुजन मनिमान | कलावान कोविद सुशल, सुमन दल धीमन्त ! माता सजन ब्रह्मविद, ता गुनीजन सन्त । ४ अफथानक-यह कविवरकी रसनामा नाका सन्द इसमें ६७३ दोहा चागाईहमने यह जीवनात मी * ग्रन्थके आधारस लिगा है। इनकी विना विप परिचय देनकी आवश्यकता नहीं है, क्योंकि जीवनमा यत्रतम इसके अनेक पद्य उद्धत किये गये है। अनुमानगे जाना : में है, कि यह अन्य बी शीभतार लिया गया। श्योंकि अन्य कविताओंकी नाई कविवरने में यमकानुपादिपर प्यान नहीं दिया है । केवल व्यतीतदशाका कथन ही इमक रचनका मुख्य उद्देश रहा है। फिर भी कहीं २ के स्वाभाविक पद्य को गनोहर HTTrt-t-t- ttixt-Trint. t i 芸太った太った人々は、とっさっさっと太った・いよいとは・は・な・いよいさいさいさいベーホーよーよーメーカーよーさーいち・ボーボーズーちゃこっとい太・・まっいったいよいよ पसंहार। ___ अन्तमें हिन्दीक प्रिय गुणग्राही पाठकवाँस निवेदन करके यह लेख पूर्ण किया जाताहै कि. ग्रन्धकर्ता, प्रकाशक और नवक अन्तमें । संशोधक तथा चरित्रलेखक परिश्रमका विचार करके ये इसे ध्यान से पढ़ें, पढ़ाव, और सर्व साधारणमें प्रचार करें। इतना ही हम लोग में अपना परिश्रम सफल समझेंगे। प्रकाशक महाशयकी आदरणीय प्रेरणास ॐ मैंने इस ग्रन्थके संशोधनादिका कार्य अपनी गन्दबुधनुसार सिपा tus-t-tant-T-TATEmast rint.*-tulate?-at-2-tta १ प्राज्ञामेधादिमान्विद्वानभिरूपो विचक्षणः । पण्डितः सूरिराचार्या वाग्नी नैयायिकः स्मृतः ॥ १११॥
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy