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________________ जैनग्रन्थरत्नाकरे ११३ उसमें कहांतक सफलता हुई है, इसके निर्णयका मार पाठकॉपर ही हैं । यदि वाचकोंने हमारे इस परिश्रमका किंचित् मी आदर किया तो, शीघ्र ही वृन्दावनविलासादि काव्य ग्रन्थ कवियोंके विस्तृत इतिहाससहित दृष्टिगोचर करनेका प्रयत्न किया जावेगा । हिन्दीके माननीय पत्रसम्पादकों और समालोचकोंसे प्रार्थना है कि, वे कृपाकर इस ग्रन्थकी आद्यन्त - पाठपूर्वक निष्पक्षदृष्टिसे समालोचना करने की कृपा करें और हम लोगोंके उत्साह और हिन्दीप्रचारकी रुचिको बढा | बनारसीदासजीके चरित्र लिखने में माननीय मुंशी देवीप्रसादजी सुंसिफ जोधपुर से मुसलमानी इतिहासकी बहुत सी बातोंकी सहायता मिली है, इस लिये यह अन्य और लेखक दोनों उनके आभारी हैं ! ग्रन्थसंशोधन तथा जीवनचरित्र दृष्टिदोषसे तथा प्रमादवशले -यदि कोई मूल रह गई हो, तो पाठकवृन्द क्षमा करें। क्योंकि"न सर्वः सर्वे जानाति " इत्यलम् विद्वद्वरेषु । 1 बम्बई - चन्दाबाड़ी | ३०-९-०५ ई० } विनयावनत---- नाथूराम प्रेमी । देवरी (सागर) निवासी । ***-2
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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